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________________ विरोध का अंकुर ३२६ हुआ आ गया और भीम शांत भाव से सामने जा खडा हुआ । दुर्योधन का मुख मण्डल कमल की भांति लाल हो रहा था क्रोध से, और भीम के अधरों पर मुस्कान थी। दोनों भिड़ गए । कुश्ती प्रारम्भ हो गई। अपने अपने दॉव पेंच चलाने लगे। कुछ ही क्षण उपरान्त भीम ने दुर्योधन को उठा कर पटक दिया और सीने पर जा बैठा । युधिष्टिर ने देखा तो दूर ही से भीम को कुश्ती छोड देने को कहा । पर भीम अब न रुकने वाला था। दुर्योधन ने भीम के नीचे से निकलने के बहुत हाथ पाँच मारे, पर सब व्यर्थ गए । भीम उस पर चोट पर चोट किये जा रहा था। आखिर दुर्योधन परास्त होकर हापने लगा और फिर न चाहते हुए भी उसक मुख से चीत्कार निकल गया। भीम छोड़ कर अलग हो गया और अपने भ्राताओं के पास चला गया, दुर्योधन कौरवों में जा मिला। चारो भ्राताओं ने धूल मे सने भीम को माडना आरम्भ कर दिया और फिर अर्जुन उसके शरीर को दाबने लगा, नकुल और सहदेव दुपट्टे से हवा करने लगे । युधिष्ठिर कपड़े से उनके शरीर को साफ करता रहा । दुर्योधन ने जब यह दृश्य देखा तो उसका हृदय दग्ध हो गया। उसका अग अग दर्द कर रहा था पर किसी कुमार ने उसकी सेवा न की। एकान्त मे जाकर वह गर्दन लटका कर बैठ गया। सोचने लगा यह पॉच हैं। और पाँच ही हम सौ भ्राताओं से अधिक बलशाली हैं। एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर राज्य सिंहासन पर बैठेगा। उसके चारों भाई भी उसके साथ मौज उड़ायेंगे । हमारी कोई बात भी न पूछेगा। आखिर बलिष्ट के सामने कमजोरों की क्या चलती है । यह तो जो चाहेंगे हमारा वही बनायेंगे ?" इस बात को सोचकर ही उसके हृदय मे जलन की ज्वोला धू धू करके धधकने लगी। उसके नेत्र जलते रहे, अनायास ही उसके मन मे विचार आया कि क्यों न राज्य सिंहासन पर मैं ही बैठू। परन्तु भीम और अर्जुन जैसे वलिष्ट भाइयों के रहते मैं भला कैसे सिंहासन पर अधिकार कर सकता हू । भीम और अर्जुन में भी भीम ही ऐसा है जिसे परास्त करना दुर्लभ है । अतः भीम का काम तमाम करदु तो फिर हम सौ मिलकर सिंहासन पर अधिकार कर लंग" ऐसा विचार आना था कि वह भीम फो को समाप्त करने की युक्ति सोचने लगा। X एक दिन गगा तट पर ही भीम अधिक भोजन करने के कारण
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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