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________________ के पन्द्रहवा परिच्छेद के विरोध का अंकुर कौरव पाण्डव हिल मिलकर परस्पर भ्रात समान, प्रेम और स्नेह के साथ क्रीड़ा किया करते थे एक दिन सभी ने मिलकर निश्चय किया कि गगा तट पर जाकर क्रीड़ा की जाय । निश्चय होना था कि सभी अपने अपने वस्त्र आदि लेकर गंगा तट की ओर चल पड़े। पथ पर चलते चलते हास्य उपहास से मनोरजन करते जाते । किसी के मन में मैल नहीं था, एक दूसरे के साथ भ्राता समान व्यवहार करते । आखिर गगा तट पर पहुंच गए। १०५ भ्राताओं की टोली का गंगा तट पर पहुंचना था कि ऐसा प्रतीत होने लगा मानो राजकुमारों की भीड़ कोई पर्व मनाने गंगा तट पर आ गई है। सभी ने सुन्दर वस्त्र उतार दिये और क्रीड़ा करने लगे। भीम सभी में अधिक चचल और हष्ट पुष्ट था । वह कौरव भ्राताओ के साथ क्रीडा करने लगा। कभी किसी की टांग पकड़कर रेती मे घसीटता, कभी किसी को कधे पर उठाकर फेंक देता, किसी को जल मे डाल देता, और फिर स्वय ही छलांग लगाता, पानी में से निकालकर तट पर ला पटकता । कभी दो कुमारो को पकड़ कर उनके सिर,लगा देता। कुमार चीत्कार कर उठते किसी के नेत्रो मे अश्र छलछला आते तो भीम खिलखिला पड़ता पर उसका मन पवित्र था । वह इसी प्रकार की क्रीड़ा में आनन्द लेता था। एक बार कौरव कुमार एक वृक्ष पर जा चढ़े, फल खाने हेतु । भीम को जो उदण्डता सूझो उसने वृक्ष को इतने जोर से हिलाया कि सारे कुमार पके आमो की भॉति धड़ाधड़ नीचे आ टपके । पर किसी को भी उसके प्रति कोई रोप न हुआ क्यो कि सभी जानते थे कि भीम तो मन बहलाने के लिए खेल कर रहा है, किसी को जानबूझ कर कष्ट ने की उमकी इच्छा नहीं है । •
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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