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________________ जैन महाभारत ३२४ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm ७६-अभय ८०-रौद्र कर्मा ८१-दृढ़रथ ८२-अनाधृण्य ८३-कुडभेदी ८४-विराजी ८५-~-दीर्घलोचन ८६-प्रथम ८७--प्रमाथी ८८---दीर्घालाप ८९-वीर्यवान ६०-दीर्घबाहु ६१-~महावक्ष १२--विलक्षण ६३-दृढ़वक्षा ६४ -कनक ६५-कांचन ६६-सुध्वज १७-सुभज १८-अरज । कुल मिला कर सौ पुत्र थे सभी यशस्वी, बुद्धिमान और पराक्रम शाली थे । किन्तु यह सभी अभिमानी थे। पाण्डू के पाँच पुत्र और धृतराष्ट्र के सौ पुत्र, यह कुल १०५ एक साथ ही क्रीड़ा किया करते थे। एक दिन धृतराष्ट्र ने पाण्डू आदि सभी भ्राताओं को बुलवाया और नैमित्तिक को भी बुलवा लिया और पूछा कि राज्य सिंहासन पर सभी युधिष्ठर को बैठाने के पक्ष मे है । परन्तु मैं चाहता हूं कि मेरा पुत्र दुर्योधन भी राज्य सिंहासन पर बैठे। जिस समय धृतराष्ट्र ने यह बात कही पृथ्वी कॉप गई । उसी समय मिवा पक्षी की आवाज आई। आकाश पर बादल छा गए । वादों ने 'भयंकर आर्तनाद किया । नैमित्तिक बोला “राजन् । जिस समय आपने प्रश्न पूछा है उस समय के लक्षण बता रहे है कि दुर्योधन राज्य सिंहासन पर बैठ कर कुल नाशक सिद्ध होगा, उसके कारण भयकर उत्पात उठेंगे और हस्तिनापुर राज्य पर उल्लू बोलने लगेंगे।" ___बात सुन कर सभी स्तब्ध रह गए। विदुर जी बोल उठे "यदि ऐसा ही है तो दुर्योधन को राजसिंहासन देने की बात भूल कर भी मत सोचो । जो कुल नाशक है उसे भला राज्य सिंहासन सौपा जा सकता ___एक तो ज्योतिषि की बात से ही धतराष्ट्र के हृदय पर भयकर आघात हुआ था, पर विदुर जी की बात ने और भी भारी घाव कर दिया। वे कुछ न बोल पाए। क्या कहते ? मौन रहे, पर पीड़ा और क्रोध से उनका हृदय धड़कने लगा । पाण्डू सहनशील, उदार चित्त, और बड़ी सूझ बूझ के व्यक्ति थे। वे तुरन्त बोल पड़े "नहीं । नहीं । जो भी हो पहले युधिष्ठर और उसके पश्चात दुर्योधन गद्दी पर बैठेगा। हम किसी के अधिकार को भविष्य वक्ता के कथन पर ही नहीं छीन सकते। किसी का पुण्यवान अथवा पतित होना उसके पूर्व कर्मों पर निर्भर है। हमारे वशज यदि ऐसे ही है कि उन्हें नष्ट होना चाहिए तो उसे कोई नहीं बचा सकता"
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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