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________________ ३२२ जैन महाभारत कर्मचारी कहने लगा "महाराज! भीमसेन कुमार नीचे कन्दरा में पड़े खेल रहे थे । मैं उधर से आ निकला। मुझे उन्हे अकेले पड़े देख कर बहुत आश्चर्य हुआ, और उठाकर यहाँ ले आया।" ____ जब नृप ने बताया कि भीमसेन गिर पड़ा था, कर्मचारी को बहुत भाश्चर्य हुआ, और नृप तो असीम आश्चर्य में डूबे भीमसेन के शरीर से धूल साफ कर रहे थे। फिर तनिक गौर से उस स्थान को और उससे नीचे दृष्टि डाली जहाँ से भीमसेन गिरा था, उन्होंने देखा कि कई शिलाए टूट गई थीं और कई पत्थर अलग जा पड़े थे, छोटे छोटे पाषाण खण्ड चूर्ण हो गये थे । नृप ने उसी क्षण उसको शिला चूर्ण नाम दिया । और उन्होंने समझ लिया कि वास्तव मे बालक वज्र शरीर है। वापिस आकर नगर में महोत्सव किया और कितना ही दान दिया। कुन्ती रानी रजनी में सेज पर निद्रामग्न थी। उन्होने ऐरावत भासद इन्द्र का स्वप्न देखा। ज्योंही भांखें खुली नृप से अपना स्वप्न कह सुनाया। नृप ने आनन्दित होकर कहा "प्रिये ! तुम्हारा यह स्वप्न इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि अबकी बार तुम्हारे गर्भ से एक परम ओजस्वी, तेजस्वी और धुरन्धर धनुषधारी पुत्र उत्पन्न होगा। यह बालक हाथ में धनुष लेकर अन्याय को समाप्त' करेगा, जगत के जीवों की रक्षा करेगा और यमराज का निग्रह करके उपद्रवों को दूर करेगा-गर्भ के दिन पूर्ण होने पर एक दिव्य कांति युक्त पुत्र रत्न को जन्म दिया। जिसका अजुन नाम रखा गया । क्योंकि कुन्ती ने गर्भ शक्रसुत के नाम से भी पुकारते है। जब अर्जुन का जन्म हुआ तो भाकाशवाणी हुई कि यह बालक भ्रातवत्सल, धनुषधारी सौम्य, गुरु भक्त, सर्वजन कृपापात्र, शत्रुनाशक होगा अन्तिम आयु में अष्ट कर्मों को नष्ट करके मोक्ष प्राप्त करेगा।" देवों ने आकाश से उसके जन्मोत्सव पर गीत गाये । जिन्हे सुनकर दुर्योधन मन ही मन कुढता रहा । पाण्डू नृप ने जन्मोत्सव पर बहुत धन धान्य व्यय किया। सहस्रों दान पात्रों को दान दिया । सारे नगर में खुशियां मनाई गई। कुछ दिनों के पश्चात् माद्री रानी के गर्भ से युगल पुत्र उत्पन्न
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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