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________________ चौदहवां परिच्छेद कौरव पाण्डवों की उत्पत्ति पुछ दिनों पश्चात प्रवक वरिण के मन्देशानुसार राजा पाण्ड पारात लेफर शौरीपुर की ओर चले । उस समय उनके गले में नाना प्रकार के गहने पड़े थे, उनके सिर पर नफेट इत्र लगा हुया था, जिस मनप इन्द्र ममान प्रतीत होते थे। 'प्रागे 'प्रागे नाना प्रकार के या यज रहे थे, जिनके शब्दों से दिशाए गूज रही थी भाट लोग विस्ता. चली गाते हुए चल रहे थे । नट नाना प्रकार के नृत्य करते हुए चल राधे । कामनी मगल गीत गा रही थीं। साथ में कितने हा नाश और राजकुमार हाथियों, और घोडों पर सवार थे । सेवक नभी पर सुगन्ध वर्षा कर रहे थे। राम्ते में प्रकृति की शामा देखते और नप पाएटू को रिनाते हुए पराती गण मानन्द न जाये। कोई नदी को देख कर पता वजय पाएर महाराज | फमलों ने परिपूर्ण, क्लरल फरना पर नदी सदर स्त्री के समान प्रतीत होती है । और उधर पर्यत देखिये यह भी पाप के ममान उन्नत वंश पाला है। ऊ पे दाम । उन 17 द कर रुपमा दी गई है।) फोई फर वटता कुमार श्राप विवाह की शी मन मयूर पपनी प्रिया के साथ विनना मुहायना नृत्य कर रहा है। पौर पर देखिये यह मपन फल और पत्नों पाल पर मुझे जा रहे हैं मानो सारे अभिनन्दन में उन्होंने अपने सिर मुरालिको प्रार मेरे पापको पान पीर फूल समर्पित कर रहे है। राज्योंही गीरीपुर पहुची प्रा. एपिा सिननं ही मामी, मारी पर हनी पतिया ६ मम पागत महार लि" नगर पार पान समरनगर यसमा धनुपम था, मानमान हए थे, जो पिप गवने प्रकार होने ५१ घर
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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