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________________ महाराणी गंगा २९६ पर चित्रांगद न माना और उसने स्पष्ट कह दिया कि आप हमारे भाई हैं । महान बलवान ओर रण कोशल में निपुण हैं, हमारा साथ दीजिए, वरना शॉत रहिए।। चित्रांगद भीम के परामर्श को ठुकरा कर नीलांगद पर जा चढा । घमासान युद्ध हुआ और उस युद्ध में ही नीलागद ने चित्रांगद को मार डाला । भीष्म को यह सुनकर बहुत दुख हुआ। किन्तु उन्हें चित्रागद की प्रात्मा सहायता के लिए पुकार रही है । चिनॉगट के हत्यारे से बदला लेने के लिए जो पुकार आई, उन पर वे चुप न रह सके और पागे बढते नीलॉगद के विरुद्ध जा डटे । भीष्म तथा नीलॉगद के मध्य भयकर युद्ध हुआ। अन्त में विजय भीष्म की ही हुई और नीलॉंगद युद्ध के में ही काम प्राया । इस प्रकार भाई की हत्या का बदला लेकर उन्होंने भ्रात्तु भक्ति का आदर्श उपस्थित किया। राज्य सिंहासन पर विचित्र वीर्य को वैठा दिया गया। और भीम अपने जीवन को साधारणतया निभाते रहे । समय समय पर जब कभी श्रावश्यकता होती तो वे विचित्र वीय को परामर्श देते और मदा ही सहायता के लिए भी तत्पर रहते । वे अपने लघु भ्राता के मान को 'अपना मान समझते और उनकी रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते। काशी से सूचना मिली कि काशी नप अपनी अम्बा, अम्बिका, ओर प्रालिका, तीनो कन्याआ का स्वयबर रचा रहा है । सभी राजाओं तथा राजकुमारी को स्वयवर में निमन्त्रित किया गया है । पर हस्तिानापुर सन्देश नहीं भेजा गया । विचित्र वीर्य ने भीम को बुला कर कहा, भ्राता जी । आपके होते हुए क्या हस्तिानापुर सिंहासन का इतना अनादर ?" "मेरी समक मे तो यह नहीं भाता कि 'पाखिर हस्तिनापुर निमप्रण भेगने में काशी नरेश को आपत्ति क्या है" भीम बोले । __ "वे हमे हीन जाति का बताते हैं" कहते समय विचित्र वीर्य की पास जल रही थीं। "चह उनकी भूल है।" भीम वाले । ____ "भूल नहीं, उदण्डता है, दुप्टना है। इन अपमान को हम नहन नहीं कर सकते"
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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