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________________ રદ્દ ............. जैन महाभारत शुद्धि के लिए जिस ने संसार में कुछ नहीं किया उसका मनुष्य जीवन व्यर्थ ही गया समझो। उन्होंने धर्म की व्याख्या करते हुए यह भी उपदेश दिया कि बिना अपराध के किसी भी जीव की हत्या करना, फिली निरपराधी को सताना भयकर पाप है, अतः गृहस्थ जीवन में रह कर निश्चय हिंसा का तुरन्त त्याग कर देना चाहिए । मिथ्या शिक्षा और मिथ्या भाषण न कभी सुनना चाहिए और न अपने मुख से निकालना ही चाहिए। नीतिवान व्यक्ति को बिना दिए किली की कोई वस्तु नहीं लेनी चाहिए। यह सब शोल धर्म के ही मोपान है, जो कि शिरोमणि धर्म है, जो इसे धारण करता है वही पुण्यवान है। किमी व्यक्ति के उच्च आसन अथवा उच्च पद पर विराजमान हो जाने से ही वह महान् एवं श्रेष्ठ नहीं हो जाता। बल्कि श्रेष्ठता धर्म में निहित है । जो धर्म का पालन करता है वही श्रेष्ठ है, वही श्रादरणीय है। ___मुनि जी के उपदेश का बालचन्द्र से वृद्धि की ओर जाने गांगेय कुमार पर बहुत प्रभाव हुआ और गगा को तो जेसे सुजीवन पथ पर चलने के लिए दीप शिखा मिल गई थी उसका हृदय 'पालोकित हो गया । वापिस आकर गंगा ने विवाह से पूर्व शान्तनु द्वारा दिए गए वचन का स्मरण कराया। शान्तनु ने कहा-“बोलो क्या मागती हो ?" "आप निश्चय हिंसा का परित्याग कर दें।" "अर्थात् ?" "अर्थात शिकार खेलने के दुर्व्यसन का परित्याग कर दे" शान्तनु चक्कर में पड़ गए। बोले "तुम ने यह वर नहीं मागा एक अंकुश मारा है।" "आप अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण करें।" “मैंने यह थोड़े ही कहा था कि तुम मुझ पर प्रतिबन्ध लगा देना, जो वस्तु तुम मांगों मैं सकता हूँ। पर तुम तो मुझ से मेरी कला
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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