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________________ २६२ जैन महाभारत बालक के मुंह पर अलौकिक दिव्य कांति देख देख कर हर्पित हुई। सभी प्रफुल्लित हो, उल्लास से नाचने गाने लगी। "गोकुल मे आय गयो नन्दलाल" सारा ग्राम हर्ष विभोर हो गया, नन्द के घर पर सारा ग्राम एकत्रित हो गया, लोगों ने नारियों से सुना था कि वालक के मुख पर अलौकिक आभा व तेज है अतः सभी वालक को देखने के लिए उतावले हो गए । जो देखता वही हर्ष विभोर हो जाता। सभी भाति भांति की प्रसशाएं करते, कोई मुख की, कोई आंखो की, कोई शरीर की, कोई तेज की और कोई बालक के अघरो पर खेल रही मुस्कान की भूरि भूरि प्रशंसा करता, ऐसा लगता मानों सारे ग्राम की गोद रत्नो से भर गई है। इतना हर्ष था कि ग्रामीण स्वय चकित थे कि आखिर घर घर में इस बालक के लिए क्यो खुशी मनाई जा रही है। पर यह प्रसन्नता हृदय की थाह से स्वमेव ही उपजी थी। ___ बालक का नाम उनके श्याम बदन को देख कर श्री कृष्णचन्द्र रख दिया गया। दूज के चांद कृष्ण धीरे धीरे वृद्धि की ओर अग्रसर होने लगे। उनकी मुस्कान कमल के पुष्प की भॉति खिलने लगी। वे शीघ्र ही पैरों चलने लगे और अपनी चचलता से सभी का मन लुभाने लगे। दूसरी ओर देवकी अपने लाल को देखने के लिए तड़पने लगी। गौ पूजन का बहाना करके वह एक दिन यशोदा के घर गई। आगन में कृष्ण कन्हाई खेल रहे थे। देखते ही उसका मन आनन्दातिरेक से उछलने लगा। जाते ही दौड़ कर कृष्ण को उठा लिया, बारम्बार चूमा और प्यार से सिर पर हाथ फेरती रही, हर्ष के मारे उसके नेत्रों मे अश्रु छलछला आये । यशोदा को सम्बोधित करके कहने लगी "बहन यशोदा ! तू बड़ी सौभाग्यवती है। तू ने इतना सुन्दर बालक पाया है, कि इसे देख कर ही मन ललचाता है। तू ने इस सर्वविधि मनहर, अनुपम, सुन्दर और चचल बालक को जन्म देकर अपने को धन्य कर लिया है। देख इस के पंकज समान लोचन, हाथ पांव के चक्रादि लक्षण इसके आरक्त ओठ, आरक्त हथेलियां, और चंचलता कितनी मन लुभावनी है । सिर पर रत्न जटित टोपी, लाल झगला, नैनों में काजल यह सब इस पर कितना सजता है, बहन ! तुम्हारा बालक तो बहुत ही सुन्दर है।" लगे। उनकी मुस्का और अपनी चचलताने के लिए
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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