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________________ वसुदेव के अद्भुत चातुर्य २१६ यह सुन कर वसुदेव ने उत्तर दिया । आप चिन्ता न कीजिए । मै समझता हॅू कि मैं इस समस्या का समाधान कर सकू गा, मेरी तुच्छ बुद्धि में इस विवाद को निपटाने का एक उपाय सूझ गया है। चलो मेरे साथ, और राजा से चल कर विवाद के निर्णय की सूचना दो । तत्पश्चात् अनात्य ने अपने परिवार को बुला लिया । वसुदेव के साथ उन सब लोगों ने गोदावरी की स्वच्छ जल धारा में स्नान तथा कृत्य समाप्त कर महर्षि द्वारा प्रदत्त आश्रमोचित आहार ग्रहण कर वहा से प्रस्थान कर दिया। पोतनपुर में प्रविष्ट होते ही वसुदेव के अनुपम रूप लावण्य का देख सभी लोग कहने लगे कि अरे यह तो कोई देवता अथवा कोई विद्याधर है। इस प्रकार जनता द्वारा प्रशंसित और सत्कृत होते हुए वसुदेव राजमहलों मे जा पहुचे । महाराजा ने उन्हें देखकर उनका बडा आदर सम्मान किया, स्नान सन्ध्या भाजनादि के पश्चात वह दिन वसुदेव ने विश्राम करते हुए बिता दिया। दूसरे दिन प्रातः काल ही महाराज ने आकर वसुदेव से कहा कि चलिए उन सार्थवाह पत्नियों को जरा देख लीजिए । 1 तत्पश्चात् महाराजा और मन्त्रियों से घेरे हुए वसुदेव वाह्योपस्थान अर्थात् दीवाने आम में बैठे। यह सभा स्थान पहले से ही लागों से खचाखच भरा हुआ था । प्रार्थी दोनों सार्थवाह पत्निया भी वहां पहले ही से उपस्थित थीं । उन्हे देखकर वसुदेव ने राजपुरुषो को आज्ञा दी कि एक अत्यन्त तेज धारा वाली आरो उपस्थित की जाय । आरी या करोत के आ जाने पर वसुदेव ने उन दोनों श्रष्ठ पत्नियों को अपने पास बुलाकर कहा कि आप दोनों सेठ के धन के लिये ही तो लड रही हो, यदि हम इम बच्चे को आधा दोनों को बाँट देतो धन भी अपने आप ही दोनों को आधा आधा मिल जायगा । यह करकर उस लडके को बुला लिया गया, और उसे एक निश्चित स्थान पर खडा कर बधिकों को आज्ञा दी गई कि इस लडके के सिर पर आरी रख कर इसे ठीक मध्य भाग में से चीर डाला जाय । • ज्यों ही लडके के सिर पर आरी रक्खी गई उन दोनों में से एक स्त्री का मुख मंडल तो आधा धन प्राप्त हो जाने की आशा से विकसित कमल की भांति खिल उठा। किन्तु दूसरी स्त्री - 'मैं सच कहती हॅू मेरा विश्वास करो यह मेरा बेटा नहीं इसी का है यह धन और पुत्र
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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