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________________ १३२ जैन महाभारत पर बैठ जाना चाहिए। साथ ही सब लोग अपनी आँखों पर पट्टियां वांवलें क्योंकि यहाँ कि चढ़ाई इतनी सीधी और ऊंची है कि आंखें खुली रहने से मनुष्य को भाई आकर उसके गिर जाने का भय रहता है । अब हम इसी प्रकार बकरो की सवारी कर वज्रकोटिक पर्वत पर जा पहुचे ! यहाँ की ठडी हवाओं के लगते ही बकरों की गति अवरुद्ध हो गई । उनके शरीर सुन्न पड़ गये और वे जहा के तहाँ खड़े रह गये। अब हमे भाभियो ने कहा कि सब लोग अपनी-अपनी आँखे खोल लो और बकरों से नीचे उतर आओ, आज का पड़ाव हमारा यहीं रहेगा।' प्रातःकाल होते ही हमे सूचित किया गया कि रत्नद्वीप यहां से वह सामने दिखाई दे रहा है। किन्तु इस पर्वत और उस पर्वत के अन्तराल को कोई भी जीव चलकर पार नहीं कर सकता। वहा पर किसी भी प्राणी के लिये चलकर पहुँच सकना असभव है। इसलिये आप सब लाग अपने-अपने बकरों को मार डालिये और उनका मास पकाकर खा लाजिए। उनकी खाल की भाथडिया ( भस्रा या मशक ) बना लीजिए । सब लोग अपने साथ एक-एक छुरी लेकर इन भाथड़ियों मे घुस जाआ। रत्नद्वीप मे से भरुण्ड नामक महाकाय पक्षी यहां चुगने के लिये आते है। वे यहाँ आकर बॉघ, रीछ, आदि हिंसक जन्तुओं को मार कर उनका मांस खाते है और जो कोई बड़े जीव मिलते है, उन्हें उठाकर अपने देश मे ले जाते है। आप लोगो की रूधिराक्त भायडियो को देखकर उन्हे काई वडा मास पिंड समझ वे पक्षी रत्नद्वीप में उठा ले जायगे। जब वे वहाँ ले जाकर तुम्हे धरती पर डाले तो अपना छुरिया में भावडियो को काटकर उनसे बाहर निकल आना। रत्नद्वीप में जाने का एक मात्र यही उपाय है, वहा से रत्न लेकर चंताट्य की तलहटियो के पास में ही 'स्वर्ण भूमि है वहा जा पहुंचेगे। बकरी के वध करने की बात सुन मेरा तो हृदय दहल उठा । जिन बकरी ने ऐसे विकट मार्ग में अपने ऊपर बैठा कर हमे यहा तक पहुंचाया। उन्हीं वरी को अपने हाथ से मारने जैसा भयकर कुकृत्य भला कोई कम कर सकता था। इसलिये मैंने उन लोगों से कहा कियदि मुझे पहले से यह ज्ञात होता कि इस व्यापार में ऐसे राक्षसी कृत्य करने पडगे, ता मैं कभी तुम्हारे साथ न आता, अब भी तुम लोग मेरे १. स्वणं दीप
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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