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________________ ६२ जैनमहाभारत में मत्सरीकृता, पंचम में शुद्धषडगा धैवत में उत्तरायता और निषाद मे रजनी मूछना होती है। इसी प्रकार मध्यमग्राम संभूत, मध्यम स्वर मे मार्गवी और धैवत में 'पौरवी मूर्च्छना होती है । छः और पांच स्वर वाली मूच्छा को तान कहते है उनमें छ स्वर वाली षाडव और पाँच स्वर वाली औड़व कही जाती है । मूच्छेनाओं के साधारण कृत (साधारण स्वर संभूत) और काकली स्वर सभूत ये दो सामान्य भेद हैं, इसलिये पूर्वोक्त दोनों ग्रामों की आंतर स्वर संयुक्त मूच्छर्नाओं के दो २ भेद हो जाते हैं। तान चौरासी प्रकार की होती है । उनमे औडव (पंच स्वर संभूत) के पैंतीस और पाडव (षटस्वर संभूत) के उनचास भेद हैं । आंतरस्वर सयोग आरोही कोटि मे अल्प विशेष दोनों रूप से रहता है। अवरोही मे नहीं यदि वह अवरोही में उक्त दोनों (अल्प का विशेष) रूप से होता तो श्रुति राग रूप परिणत हो जायगी और जो स्वर वहां होना चाहिए वह चला जायगा । जातियो के अठारह भेद हैं और उनके नाम षड़गी, आर्षभी, धैवती, निषादजा, खुषड़गा,दिव्यवा षड्ग कौशिका, षड़गमध्या, गाधारीमध्यमा, गांधारीदिव्यवा, पंचमी, रंक्त गॉधारी, रक्तपचमी, मध्यमादीव्यवा, नदयती, कारवी, आंध्री, और कै (को) शिकी है । ये जातियां शुद्ध और विकृत भेद से दो प्रकार की हैं उनमें जो आपस मे एक दूसरे से उत्पन्न नहीं होतीं वे शुद्ध है और जो समान लक्षण वाली स्वर लुप्त है वे विकृत है। इन जातियों में चार जातियाँ सात स्वरवाली छः स्वरवाली और अवशिष्ट दश, पॉच स्वर वाली हैं । मध्यमादीव्यवा, षडग कौशिका, कर्मारवी और गांधार पंचमी ये चार जातियां सात स्वर वाली है । षड्गा आंध्री, नंदयती और गाधारी दीव्य ( य) वा ये चार स्वर वाली जातियाँ हैं और शेप दश पांच स्वर वाली समझनी चाहिये । ___ उनमें निषाद की आर्षभी, धैवती, षड्ग, मध्यमा और षड्गोदीच्यवती ये पांच स्वर वाली पॉच जातिया षड्गग्राम में और गांधारी रक्तगाधारी, मध्यमा, पचमी और कोशिकी ये पांच मध्यमग्राम में होती * हैं। पांच स्वर वाली जाति कभी पाड्व (छः स्वर वाली) कभी (ओड्व) पाच स्वर वाली हो जाती है । षड्गग्राम मे सात स्वर वाली बहु (षड्ग) कौशिकी जाति होती है और गान के योग से स्वरवाली भी होती है ।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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