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________________ वसुदेव का गृहत्याग स्वयवर प्रथा के अनुसार विवाह करना चाहते हैं । हम दोनो राज पुरुष हैं राजा ने हम का ओर हमारे जैसे सैकडो व्यक्तियो को इसी कार्य के लिए नियुक्त कर रखा है, इस लिए यदि आप संगीत और नृत्य विद्या में रुचि रखते हों तो हमारे साथ राजसभा मे चलिये । क्योंकि आपके जैसा रूपवान् और गुणवान व्यक्ति हमे कोई दिखाई नहीं देता। यदि आप हमारे साथ चले चले तो हमारा श्रम सफल हो जाय । इस पर व उनके साथ नगर की ओर चल पड़े । ७७ नगर के राज पुरुषो ने वसुदेव को महाराज की राजसभा में पहुँचा कर महाराजा से उनका परिचय करा दिया। ऐसे गुणवान् व्यक्ति को देखकर महाराजा ने उनका बडे आदर और उत्साह के साथ स्वागत सत्कार किया । तत्पश्चात परीक्षा दिवस आया । श्यामा और विजया दोनो के साथ सगोत विद्या सम्बन्धी अनेकों प्रश्नोत्तर हुए । अन्त में सगीत शास्त्र में प्रवीणता को देखकर दोनों राजकुमारियॉ उन पर मुग्ध हो गई और उन्होंने वसुदेव से अपनी पराजय स्वीकार कर ली। इस पर महाराज ने शुभ लग्न में वसुदेव का अपनी दोनों कन्याओं श्यामा और विजया के साथ विवाह कर दिया और आधा राज्य भी उन्हे समर्पित कर दिया 1 जिस प्रकार वन गज हस्तिनियों के साथ विहार करता है उसी प्रकार स्वच्छन्दता पूर्वक अपनी दोनों पत्नियों के साथ बिहार करते हुए समय यापन करने लगे। एक दिन वसुदेव की शस्त्र विद्या मे अभिरुचि देख वे वसुदेव कुमार को पूछने लगीं कि हे आर्य पुत्र | आप तो ब्राह्मण कुमार हैं। फिर आपने यह शास्त्र विद्या में इतनी निपुणता क्यों प्राप्त की है ? इस पर वसुदेव ने उत्तर दिया कि बुद्धिमान् ब्राह्मण के लिए सभी विद्याओं का अभ्यास आवश्यक है । क्योंकि ब्राह्मण तो सब विद्याओं का शिक्षक गुरु हैं। तत्पश्चात् उनका उत्तरोत्तर परस्पर प्रगाढ़ प्रेम हो जाने पर वसुदेव ने अपना पूरा २ सच्चा वृतान्त जिस प्रकार वे घर से छिपकर निकल भागे थे सब कुछ स्पष्ट कह सुनाया । उनके उस वृतान्त को सुनवर महाराज तथा श्यामा और विजया दोनों को ही परम प्रसन्नता प्राप्त हुई। कुछ समय बीतने पर विजया गर्भवती हो गई ।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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