SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४. आसन का प्रयोग शुद्ध हवा मे करना चाहिए । ५ पद्मासन - सुखासन जैसे मृदु आसनो को छोडकर शेष अधिकांश आसन भोजन के पश्चात् तीन घंटे से पहले नही करने चाहिए। कठोर आसन करने के पश्चात् आधे घंटे से पहले भोजन नही करना चाहिए । साधारणतया शौच से निवृत्त होने के पश्चात् प्रात काल मे आसन करना अति उपयुक्त है अथवा रात्रिकाल मे । ६. आसन करने वाले को डटकर भोजन नही करना चाहिए। उसका भोजन सात्त्विक होना चाहिए । ७ आसन के पश्चात् उसका प्रतिलोम आसन अवश्य करना चाहिए । जैसे 1 अनुलोम सर्वागासन प्रतिलोम मत्स्यासन भुजगासन पश्चिमोत्तानासन प्रतिलोम आसन की काल मर्यादा अनुलोम आसन से आधी होनी चाहिए। यदि दस मिनट सर्वागासन हो तो मत्स्यासन पाच मिनट करना चाहिए। ८ प्रत्येक आसन के पश्चात् एक मिनट का उत्तानशयन ( शवासन ) करना चाहिए और आसन के पूरे क्रम की समाप्ति पर उक्त आसन पाच मिनट से पन्द्रह मिनट तक करना चाहिए । ६ आसन-काल मे कसा हुआ वस्त्र, जो रक्त सचार मे बाधा डाले, नही पहनना चाहिए किन्तु कोपीन आवश्यक है । १० हर आसन के साथ मूल-बन्ध अवश्य करना चाहिए । आसन का सामान्य प्रयोजन भगवान् महावीर ने आसन को तप का एक प्रकार बतलाया है । उनकी भाषा मे आसन का नाम कायक्लेश है । आसन के द्वारा शरीर को कुछ कष्ट होता है । उस कष्ट से मानसिक धैर्य और सहिष्णुता का विकास होता है । यह आसन का आध्यात्मिक लाभ है । आसन के द्वारा धमनियों में रक्त का सचार उचित प्रकार से होता है । अवस्था के साथ हृदय की धमनिया कठोर और सकरी होती जाती ७४ / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy