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________________ मोडते हुए पीछे ऊपर की ओर ले जाइए। दोनो हाथो को पीछे की ओर फैलाते हुए उनसे दोनो पैरो के टखनो के पास का भाग पकडिए । भुजगासन की भाति नाभि से ऊपर के भाग को ऊपर की ओर उठाइए। समय-एक से पाच मिनट। फल-यकृत, प्लीहा और उदर के रोग शान्त होते है। विपरीत क्रिया सर्वागासन विधि-भूमि पर सीधे लेट जाइए। फिर धीमे-धीमे दोनो पैरो, सक्थियो (ऊरुओं) तथा गर्दन तक के शरीर को ऊपर की ओर ले जाइए। दोनो हथेलियो से कमर को हल्का-सा सहारा दीजिए। समय-दो मिनट से आधा घटा। फल-१. मस्तिष्क और हृदय के स्नायुओ की शुद्धि । २. उदर रोगो का शमन। ३. वीर्य-दोषो की शुद्धि। ___४. कण्ठमणि पर दवाव पड़ने के कारण उसका समुचित स्राव होता है। सर्वागासन मे पैरो को पीछे की ओर मोडकर भूमि से सटा देने पर हलासन हो जाता है। समय-एक मिनट से पन्द्रह मिनट। फल-१. पृष्ठरज्जु लचीला होता है। २. अग्नि प्रदीप्त होती है।। सर्वागासन मे पैरो को मोडकर दोनो कानो के पास सटा देने पर कर्णपीड़नासन हो जाता है। समय-सुविधानुसार। कर्णपीडनासन का उपयोग ध्यान के लिए भी किया जा सकता है। शीर्षासन __विधि-दोनो घुटनो के वल बैठकर दोनो हथेलियो को एक दूसरे से वाधकर उन्हे भूमि पर टिकाइए। अथवा किसी मोटे कपडे को नीचे रखिए। ७० / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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