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________________ मन को शान्त व स्थिर करने के लिए शरीर को शिथिल करना बहुत आवश्यक है। प्रयत्न से चचलता वढती है। स्थिरता अप्रयत्ल से आती है। शरीर उतना शिथिल होना चाहिए जितना किया जा सके। वह प्रतिदिन आधा घटा शिथिल हो सके तो मन अपने आप शान होने लगता है। शिथिलीकरण के समय मन पूरा खाली रहे, कोई चिन्तन न हो, जप भी न हो। यह न हो सके तो ॐ, अर्हम् जैसे किसी शब्द का ऐसा प्रवाह हो कि बीच मे कोई दूसरा विकल्प न आए। श्वास की गिनती करने से यह स्थिति सहज ही बन जाती है। कायोत्सर्ग के प्रारम्भ मे इन संकल्पो को दोहराइए१ शरीर शिथिल हो रहा है। २ श्वास शिथिल हो रहा है। ३ स्थूल शरीर का विसर्जन हो रहा है। ४ तैजस शरीर प्रदीप्त हो रहा है। ५ कार्मण शरीर (वासना-शरीर) भिन्न हो रहा है। ६ ममत्व-विसर्जन हो रहा है। ७ मै आत्मस्थ हो रहा है। कायोत्सर्ग का कालमान कायोत्सर्ग की प्रक्रिया कष्टप्रद नही है। उससे शारीरिक विश्रान्ति और मानसिक शान्ति प्राप्त होती है। इसलिए वह चाहे जितने लम्बे समय तक किया जा सकता है। कम से कम पन्द्रह-बीस मिनट तो करना ही चाहिए। कायोत्सर्ग मे मन को श्वास में लगाया जाता है, इसलिए उसका कालमान श्वास की गिनती से भी किया जा सकता है, जैसे सौ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग, दो सौ, तीन सौ, पाच सौ, हजार श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग आदि-आदि। कायोत्सर्ग का फल ___ कायोत्सर्ग का मुख्य फल है-आत्मा का सान्निध्य प्राप्त करना। उसका गौण फल है-मानसिक सन्तुलन, बौद्धिक विकास और शारीरिक स्वस्थता । मानसिक स्वस्थता, स्नायु-तनाव व कफ से उत्पन्न रोगो के लिए ५८ / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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