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________________ 1 हो जाती है । इसी प्रकार वह पदार्थो व वृत्तो के प्रति अनासक्त होता है, तव उसकी चचलता छूट होती है । १७ मन के निरोध का एक हेतु श्रद्धा का प्रकर्ष है । वह ध्येय के प्रति अत्यन्त निष्ठाशील व समर्पित होकर निरुद्ध हो जाता है । आत्मज्ञान, वैराग्य और श्रद्धा प्रकर्ष-मन की स्थिरता के ये तीनो हेतु आन्तरिक है। १८. काय का शिथिलीकरण भी मन के निरोध का साधन है । काय की चचलता मन की चंचलता को बढाती है । मन की स्थिरता के लिए शरीर की स्थिरता आवश्यक है । १६. सकल्पो का निरोध करने से भी मन निरुद्ध होता है । मन कल्पनाओ से भरा रहता है तब क्रियात्मक शक्ति का विकास नही होता । करणीय कल्पना का मन पर भार न हो, वह खाली रहे तभी उसकी शक्ति केन्द्रित होती है I २० मनोनिरोध का सबसे बडा साधन है - ध्यान । 9 २ शिथिलीकरण, सकल्प -निरोध और ध्यान- मन की स्थिरता के ये तीनो हेतु अभ्यासात्मक है। २१. गुरु के उपदेश - साधना के रहस्यो का प्रशिक्षण और प्रयत्न की वहुलता - बार-बार अभ्यास करने से उक्त साधनो की उपलव्धि हो जाती है । मनोनिरोध के साधन केशी स्वामी ने गौतम स्वामी से पूछा- यह मन एक चपल घोडा है । वह चलते-चलते उन्मार्ग की ओर भी चला जाता है । आप उसका निग्रह कैसे करते है " गौतम ने कहा- मैने उस घोडे को खुला नही छोड़ रखा है। उसकी लगाम मेरे हाथ मे है । वह लगाम क्या है ? ज्ञान, बुद्धि या विवेक लगाम है । वह जिसके हाथ मे होती है, वह उस घोडे पर नियत्रण पा लेता है । उत्तराध्ययन, २३ / ५५ वही, २३ / ५६ मनोनुशासनम् / ३५
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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