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________________ की ओर झाकने की भावना जागृत होती है। वह इस भावना की पूर्ति के लिए अन्तर्निरीक्षण अर्थात् ध्यान का प्रयोग प्रारम्भ करता है। किन्तु यह प्रयोग एक श्वास मे ही सफल नहीं हो जाता है। इसकी सफलता के लिए इसे बहुत लम्बी साधना व प्रतीक्षा करनी पड़ती है। जव वह अन्तर्निरीक्षण का प्रारम्भ करता है, तब मन जो पहले शान्त-सा प्रतीत होता था और अधिक चंचल हो जाता है। मन को इधर-उधर चक्कर लगाते देख ध्याता के मन में विकल्प उठता है कि वह ध्यान करके एक शान्त सर्प की पूछ पर पग रख लेता है या सोये सिंह को ललकार लेता है। किन्तु यह घबराने की स्थिति नही है। यह मन की स्थिरता की ओर बढने वाला पहला चरण है। आपने अनुभव किया होगा कि जमे हुए कूडे-करकट के ढेर मे दुर्गन्ध नही आती किन्तु उसे साफ करने के लिए आप खोदेगे, उस समय दुर्गन्ध फूट पड़ेगी। यह शोधन का पहला चरण है। किसी व्यक्ति के पेट मे मल संचित है, उसे सामान्यत. कष्ट का अनुभव नहीं होता किन्तु जव वस्ति (ऐनीमा) के द्वारा मल का शोधन किया जाता है, तब वायु कुपित हो जाता है, पीडा भी बढ़ जाती है किन्तु वह प्रकोप और पीडा शोधन की प्रक्रिया का प्रथम संकेत है। ठीक इसी प्रकार ध्यान के प्रारम्भ-काल मे जो मन की चंचलता बढ़ती है, वह ध्यान की दिशा मे उठने वाला पहला पग है। प्रारम्भ मे कुछ समय तक ध्याता ध्यान करने की मुद्रा मे बैठ जाता है किन्तु अन्तर्निरीक्षण की स्थिति का उसे कोई अनुभव नहीं होता। किसी के लिए यह स्थिति थोड़े समय के लिए होती है और किसी-किसी के लिए लम्बे समय तक चली जाती है। जो इस स्थिति से घवराकर अन्तर्निरीक्षण के अभ्यास को छोड़ देता है वह बीच में ही रुक जाता है और जो इस स्थिति मे घवराता नही है वह अगली भूमिकाओ मे पहुंच जाता है। विक्षिप्त की अगली भूमिका सन्धि की है। इस भूमिका मे ध्याता का मन अन्तर्निरीक्षण का अनुभव कर लेता है, यद्यपि वह उसमे लम्बे समय तक टिक नही पाता। अन्तर्निरीक्षण करते-करते फिर वाहर लौट आता है। फिर अन्तर्निरीक्षण का प्रयत्न करता है और फिर बाहर लौट आता है। किन्तु इस भूमिका मे एक बड़ा लाभ यह होता है कि अन्तर्निरीक्षण का जो द्वार बन्द था, वह खुल जाता है। अन्तर्निरीक्षण का अभ्यास बढते-बढते मन एक विषय पर स्थिर रहने ३२ / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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