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________________ मनोविजय और कषायविजय का होना साधारणतया सभव नही है। ध्यान की प्रत्येक पद्धति के साथ श्वास को सूक्ष्म या मन्द करने का विधान मिलता है। सूक्ष्म प्राणायाम का अभ्यास अनेक विधियो से किया जा सकता है१. सर्वप्रथम दीर्घ-श्वास का अभ्यास करे। धीमे-धीमे श्वास को भीतर गहरे मे ले जाए और धीमे-धीमे उसका रेचन करे। इस क्रिया से नाभि के आस-पास तक प्रकम्पन पैदा हो जाता है। कम से कम इसकी बीस-पचीस आवृत्तिया होनी चाहिए। श्वास पर ध्यान केन्द्रित करने से वह शान्त, मन्द और दीर्घ अपने आप हो जाता है। सामान्यतः हम एक मिनट में पन्द्रह श्वास और पन्द्रह निःश्वास लेते हैं। दो सेकेण्ड मे एक श्वास या एक निःश्वास होता है। क्रमिक अभ्यास के द्वारा एक मिनट मे छह श्वास और छह निःश्वास, फिर तीन श्वास और तीन निःश्वास, फिर दो श्वास और दो नि श्वास तथा एक श्वास और एक निःश्वास एक मिनट मे करे। यह सूक्ष्म प्राणायाम है। इससे मन को स्थिर, शान्त करने मे बहुत सहयोग मिलता है। योग की भाषा मे प्राण, बिन्दु (वीय) और मन पर्यायवाची जैसे है। प्राण पर विजय पा लेने से विन्दु और मन पर विजय हो जाती है। बिन्दु पर विजय पा लेने से प्राण और मन विजित हो जाते है। मन पर विजय पा लेने से प्राण और बिन्दु सध जाते है। तीनों में से किसी एक की साधना करने पर शेष दो स्वय सध जाते है। प्राण, बिन्दु और मन-इन तीनो मे प्राण का स्थान पहला है। पहला इस अर्थ मे है कि प्राण की साधना के बिना उन दोनो को साधना सर्व साधारण के लिए कठिन कार्य है। समताल श्वास-जितनी मात्रा मे पहला श्वास लिया गया, उतनी ही मात्रा में दूसरा, तीसरा। इस प्रकार तालबद्धश्वास लेना समताल श्वास है। दीर्घश्वास-लम्बा श्वास लेना। कायोत्सर्ग-कायोत्सर्ग का अर्थ है-शरीर की चचलता का विसर्जन। इसका विवेचन कायोत्सर्ग के प्रकरण मे किया जायेगा। मनोनुशासनम् । २१
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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