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________________ सौ चेप्टा श्वास-प्रश्वास पर ध्यान केन्द्रित करने का कितना महत्त्व है, यह कायोत्सर्ग की विधि से जाना जा सकता है। कायोत्सर्ग श्वास-प्रश्वास परिमाण सायकालीन प्रात कालीन पचास पाक्षिक तीन सौ चातुर्मासिक पाच सौ वार्षिक एक हजार आठ पचीस अध्ययनकालीन (उद्देस, समुद्देस) सत्ताईस अध्ययनकालीन (अनुज्ञा, प्रस्थापना) आठ प्रायश्चित्त सौ नदी-सतरण पचीस' श्वास-प्रश्वास का कालमान (या लम्वाई) श्लोक के एक चरण के समान निर्दिष्ट है। एक चरण के चिन्तन मे जितना समय लगता है उतना श्वास-प्रश्वास का काल होता है। ___ भद्रबाहु स्वामी ने 'महाप्राण' ध्यान की साधना की थी। उसमे दीर्घकालीन कायोत्सर्ग और श्वास की अत्यन्त सूक्ष्मता, आन्तरिक श्वास के निरोध की स्थिति होती है। इसीलिए इसे सूक्ष्म ध्यान कहा जाता है। ध्यान-सवर योग भी यही है। आचार्य पुप्पभूति के शिष्य पुप्पमित्र थे। आचार्य ने पुष्यमित्र को अपना सहायक नियुक्त कर सूक्ष्म ध्यान मे प्रवेश किया। उस सूक्ष्म ध्यान को 'महाप्राण ध्यान' के समान कहा गया है। उसमे न चेतना-मन होती है, न चलन और न स्पन्दन। सूक्ष्म ध्यान की साधना मे श्वास के निरोध की स्थिति भी मान्य रही है, किन्तु सामान्य ध्यान की स्थिति मे श्वास को सूक्ष्म करना ही मान्य रहा है। श्वास को १ कायोत्सर्ग शतक, गाथा ५८ से ६६ । व्यवहार भाष्य पीठिका, गाथा १२२ । पायसमाउसासा कालपमाणेण होति नायव्वा। मलयगिरि वृत्ति पत्र ४१/४२ । यावत् कालेनैकश्लोकस्य पादश्चित्यते तावत् कालप्रमाण कायोत्सर्गे उच्छवास इति। मनोनुशासनम् / १७७
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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