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________________ १. तप ४. एकत्व २ सत्त्व ५ वल ३. सूत्र वह इन भावनाओं से अपनी आत्मा को भावित करता है। ये पाच तुलाए है, इनसे अपनी आत्मा को तोलता है। फिर प्रतिमा या जिनकल्प को स्वीकार करता है। २ तप-भावना से भूख पर विजय पाने का अभ्यास किया जाता है। ३ वह परम योगी भूख को जीतते-जीतते ऐसा अभ्यास कर लेता है कि छह मास तक न खाने पर भी भूख से पीडित नहीं होता। उसका मन आर्त नहीं होता। शरीर मे ग्लानि उत्पन्न नहीं होती। ४ सत्त्व भावना से भय और नीट पर विजय पाने का अभ्यास किया जाता है। ....५ क्रमिक अभ्यास के लिए वह उपाश्रय, उसके बाहरी भाग, चतुष्क, शून्यगृह और श्मशान-इन पाच स्थानो मे कायोत्सर्ग करता ६. रात के समय सब साधुओ के सोने पर निद्रा; और भय पर विजय पाने के लिए उठकर उपाश्रय मे कायोत्सर्ग करना-यह __ पहली सत्त्व भावना है। ७ पहला अभ्यास परिपक्व होने पर उपाश्रय से बाहर कही एकान्त में कायोत्सर्ग करना दूसरी सत्त्व भावना है। ८ अभ्यास का परिपाक होते-होते चौराहे, सूने घर व श्मशान मे कायोत्सर्ग करना-क्रमश ,तीसरी, चौथी और पांचवीं सत्त्व भावना है। ६ सूत्र भावना से समय का ज्ञान होता है। १० सूत्र के परावर्तन (स्मरण) के अनुसार काल के सूक्ष्म भेदो का ज्ञान हो जाए, इस प्रकार सूत्रो को परिचित करने का अभ्यास किया जाता है। श्वास-प्रश्वास की मात्रा के साथ उनका उच्चारण होता है। एक मात्रा भी इतस्ततः नही होती। ११ एकत्व भावना के द्वारा देह और उपकरणो से अपनी आत्मा को १५२ / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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