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________________ इनका कार्य अज्ञात है। प्रस्तुत विषय का सम्बन्ध वृषण ग्रन्थियो से है । वृषण ग्रन्थियां दो स्राव उत्पन्न करती है - वहिःस्राव और अन्त स्राव । धमनियो द्वारा वृपण - ग्रन्थियो में रस- रक्त आता है । उसे प्राप्त कर दोनो स्रावो के उत्पादक अपने-अपने स्राव को उत्पन्न करते है । वीर्य अण्डकोश मे उत्पन्न होता है । उसकी दो धाराए है - एक वीर्याशय, जो मूत्राशय और मलाशय के मध्य में है - मे जाती है । दूसरी रक्त में मिलकर शरीर मे दीप्ति, मस्तिष्क मे शक्ति, उत्साह आदि पैदा करती है । वीर्याशय भरा रहे तो दूसरी धारा रक्त मे अधिक जाती है । यह स्थिति शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभप्रद है । वीर्याशय खाली होता रहे तो वीर्य पहली धारा मे इतना चला जाता है कि दूसरी को पर्याप्त रूप से मिल ही नही पाता । फलतः दोनो प्रकार के स्वास्थ्य को हानि पहुचती है । वीर्याशय खाली न हो, इसका ध्यान रखना स्वास्थ्य का प्रश्न है । जीवन के दस स्थान है : १. मूर्धा २. कण्ठ ३. हृदय ४. नाभि ६ वस्ति ७ ओज ८. शुक्र ६. शोणित १०. मास ।, ५. गुटा ये दस स्थान दूसरे प्रकार से भी मिलते है . १२. दो शख- पटपड़ियां ३.५ तीन मर्म - हृदय, वस्ति और सिर ६. कण्ठ ७. रक्त १ सुश्रुत, ११ / ३७ : ८. शुक्र ओज १०. गुदा । ओज इन दोनो प्रकारो मे है । वह (वीर्य) धातु का अन्तिम सार नही, किन्तु सातो धातुओं (रस, रक्त, मास, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र) का अतिम - ओजस्तु तेजो धातूना, शुक्रान्ताना पर स्मृतम् । हृदयस्थमपि व्यापि, देहस्थितिनिवन्धनम्॥ मनोनुशासनम् / १४३
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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