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________________ वेगो को रोकने से अपानवायु दूपित हो जाती है। मस्सा, नासूर आदि बीमारिया अपानवायु के दूपित होने से होती है। स्वभाव का चिडचिडापन और मानतिक अप्रसन्नता भी दूपित अपानवायु के कारण होती है। आहार-शुद्धि, मलशुद्धि, अश्विनी मुद्रा और मूलवन्ध करने से अपानवायु की शुद्धि होती है। शरीर की अपानवायु को शुद्ध करने की क्रिया का नाम अपानायाम है।' ऐसी कुछ क्रियाए नीचे दी जाती है, जिन्हे विधिपूर्वक करके लाभ उठाया जा सकता है। १. प्रथम, पेट को सामने की ओर जितना फुला सके, फुलाए, फिर सिकोडे। नाभि को रीढ़ की हड्डी के साथ लगाने का प्रयत्न करे। इससे जहा अपान का अनुलोमन होता है, उसके साथ वीर्य-रक्षा भी होती है। अव दोनो हाथो को पेट पर रखे। अगूठा पीछे रहे और अगुलिया सामने की ओर हो। अब पेट को पूर्ववत् फुलाए और वाये हाथ से दायी ओर दवाव डाले। दाये हाथ से पीछे की ओर दवाव डाले। अब पेट को पीछे से वाये-टाए फुलाए। इसी प्रकार कई दिनो तक अभ्यास करने से पेट स्वय वायी से दायी ओर होकर, फिर पीछे होकर वायी ओर आ जाएगा। इसी प्रकार दायी ओर से चक्कर लगाने का अभ्यास करे। तत्पश्चात् पेट को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर गतिया देनी चाहिए। इससे पेट की सफाई हो जाती है और अपानवायु वश मे हो जाता है। २. खडे होकर श्वास को विलकुल बाहर फेककर काख के दोनो पार्यो को भीतर खीचने का खूव यत्न करे। मध्यप्रदेश नाभिस्थल ऊपर रहे। इसका अभ्यास करने के लिए सामने कोई मेज हो या अन्य वस्तु जिसे खूब अच्छी तरह पकड़ा और उठाया जा सके। अव हाथो के वल सीधा ऊपर उठा जाए और वही क्रिया की जाए। नल स्वय वाहर निकलेगा। अव विना मेज के दोनो हाथो को घुटनो पर रखकर श्वास वाहर फेंककर कुक्षि-प्रदेश अन्दर खीचे। जव नल निकलने लग जाए तव श्वास चाहे अन्दर हो या वाहर, श्वास को वाहर रोककर नल निकाला जा सकता है और उसे आगे-पीछे खूब अच्छी तरह हिलाया जा सकता १. धन्वन्तरि-प्राकृतिक चिकित्सा विशेपाक, वर्प-४०, अक-२, पृ. १३७ मनोनुशासनम् / १२५
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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