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(३५) सायं कुणन अपरिश्तावी अपसायं ।। ३६ ॥ गाहा ॥ तं मोएन धनंदि, पावेन अनंदिलेण मन्ति नंदि ॥ परिसावि य सुह नंदि, समय दिसल संजमे नदि ॥३७ ।। गाहा ।। परिकल चालुम्माले, संवहरिए अवस्स नगिलहो । सो श्रवो सदेहि, नवसग्ग निवारणो एसो।। ३७ ॥ गाहा ॥ जो पढ जो निलुगा, नन्नन कालंपि थजिश्र संति श्रयं ।। नहु हुँति तस्त रोगा, पुचुप्पना विनासंति ॥ ३५॥ गाहा .ज छह परम पयं, श्र