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________________ गुरु पूजा दोहा-चहुँ गति दुखसागरविष, तारनतरन जिहाज । रतनत्रयनिधि नगन तन, धन्य महा मुनिराज ।।१।। ___ॐ ह्री श्रीग्राचार्योपाध्याय-सर्वमाधुगुरुसमूह | अत्रावतरावतर सवौषट् । ॐ ह्री श्रीग्राचार्योपाध्याय-मर्वमाधुगुरुसमूह | अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ । ॐ ह्री श्रीप्राचार्योपाध्याय-सर्वसाधुगुरुसमूह । अत्र मम मन्निहितो भव भव, वषट् । शूचि नोर निरमल छोरदधिसम, सुगुरु चरन चढाइया । तिहुँ धार तिहुँ गदटार स्वामी, अति उछाह बढाइया ।। भवभोग तन वैराग धार, निहार शिव तप तपत हैं । तिहुं जगतनाथ अराध साधु सु, पूज नित गुन जपन हैं ।।१। ॐ ह्री प्राचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुम्य जल नि० ॥१॥ करपूर चन्दन सलिलसौं घसि, सुगुरु पद पूजा करौं । सब पाप ताप मिटाय स्वामी, धरम शीतल विस्तरो।।भव० ॐ ह्री प्राचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुम्य चन्दन नि० ।।.॥ तन्दुल कमोद सुवास उज्ज्वल, सुगुरु पगतर धरत हैं । गुनकार प्रौगुनहार स्वामी, वन्दना हम करत हैं ।भव०॥३ ॐ ह्री प्राचार्योपाध्यायमर्वसाधुगुरुभ्यो अक्षतान् निर्व० ॥३॥ . शुभफूलरासप्रकाश परिमल, सुगुरुपायनि परत हों। निरवार मार उपाधि स्वामी, शीलहढ उर धरत हो भव। ॐ ह्री प्राचार्योपाध्यायसर्वमाधुगुरुभ्यः पुष्प नि० ॥४॥ पकवान मिण्ट सलोन सुन्दर, सुगुरु पायन प्रीतिमों।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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