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________________ [६७ लाल नख-मुख नयन श्याम अरु श्वेत हैं। श्याम रंग भौंह सिर-केश छवि देत हैं। वचन बोलत मनो लसत कालुपहरं । मौन | कोटि शशि भानु-दुति-तेज छिप जात है । महा वैराग्य परिणाम ठहरात है। वचन नहिं कहैं लखि होत सम्पफघर भीन. ।।६।। सोरठा -नन्दोश्वर-जिनधाम, प्रतिमा महिमा को कहै । 'धानत' लीनो नाम, यह भगति सब सुख करै ।। ॐ ह्री श्रीनन्दीश्वरद्वीपे जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमान्य पूर्णाऽध्यं नि० । दशलक्षरणधर्म पूजा उत्तम छिमा मार्दव प्रार्जव भाव हैं। सत्य शोच संयम तप त्याग उपाय हैं ।। प्राकिचन ब्रह्मचर्य धरम दस सार हैं । चहुंगति दुखते काढि मुकति करतार हैं ।।१।। ॐ ह्री उत्तमक्षमादि-दशललणधर्म! पत्रावतगवतर । सवीपट् । ॐ ह्री उत्तमक्षमादि-दा-लक्षणधमं । मन तिप्ठ निष्ठ । ठ.। ॐ ह्री उत्तमक्षमादि-दश-लक्षणधर्म ! अत्र गम सन्निहितो भव २ वपट सोरठा-हेमाचल की धार, मुनिचित सम शीतल सुरभि । भव-प्राताप निधार, दशलक्षण पूजों सदा ॥१॥ ॐ ह्री उत्तमक्षमा, मादव, आर्जव, सत्य, शौच, सयम, तप, त्याग, प्राचिन्य, ब्रह्मचर्यादि-दश-लक्षणधर्माय जल नि०॥१॥ चदन केशर गार, होय सुवास दशों दिशा । भव-प्राताप निवार, दशलक्षण पूजों सदा ।।२।। ॐ ह्री उत्तमक्षमादि-दश-लक्षणधर्माय चन्दन नि० ॥२॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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