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________________ ६४ ] AA ऊँचे पाद शत- पर भाखे । चारी नन्दनवन भिलाखे । चैत्याला मोह सुखकाने । मनवनतन कर वदना हमारी साढे पचपन महा तगा । वन नीमनम नार बहुरंगा । चैत्यालय मोलह सुपमागे । मनवचतनकर बदना हमान। उच्च प्राइस महम बताये, पाक बागेदन शुभ गाये ॥ चैत्यालय मोलह मुखकागे । मनवचतन्कर बदना हमारी। सुर नर चारन वन्दन पावै । मो शोभा हम विह मुखगावें। चत्याल्ह प्रस्मी सुखकारी । मनवनतन कर वन्दना हमारी। दोहा-पंचमेर की प्रारती, पढें सुन जो कोय । चानत' फल जान प्रभू, तुरत महा सुखहोय।।१।। ॐ ही ग्वमेल-सम्बन्धि-जिन-चैत्यालयम्य-जिन-विम्वेन्यो सर्मनि: नन्दीश्वर द्वीप ( अष्टाह्निका ) पूजा अडिल्ल छन्द-सर्व पर्व मे बडो अठाई पर्व है। नन्दीश्वर सुर जाहि लिये वसु दर्व है। हमे शक्ति नौ नाहि इहां करि थापना । पूजों जिनगृह प्रतिमा है हित प्रापना । ॐ ही श्रीनन्दोस्वन्द्वोपे-द्विप वागत-जिनालयस्य-निन्द्रनि समह । अत्र अवतर अवतर, सवोपट । अत्र तिष्ठ निष्ठ । सन्निहितो भव भव वपटू । कंचन मणिमय शृंगार, तीरथ नीर भरा । तिहँ घार दई निरवार, जाम् रन जरा
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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