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________________ ( २०६ ) लाडूजी द्यो पण्डितजी ने जाय चोटनहार || जिने० ॥ ३८ ॥ पहलो लाडू कैलाश गिरि चन्यो,स्वामी प्रादिनाथजीके दरवारजिने । दुजो लाडूजी सम्मेद शिखरजी चन्यो स्वामी वीमतीर्थकर दरवाराजिने अगरगू'लाडू चम्पापुर चन्यो,स्वामी नेमिनाथजी के दरबार जिने०॥ पाचवो लाडू पावापुरी चन्यो,स्वामी महावीरजी के दरवार जिने। छठो लाडू विदेहा चव्यो,स्वामी वीस तीर्थकर दरवार |जिने०॥ सातवो लाडू सोनागिरि चन्यो, चन्दाप्रभुजी के दरवार ॥ जिने । भोर उगन्ता यो कह्यो लाडू द्यो नी चढाय जिने०॥ तेरस चौदस मावस्या, सै: दीवालो को रात ॥जिने ॥ दोय घडीजी तडको रह्यो स्वामी वर्षमान गया निर्वाण जिने०॥ पौ४ को जो तारो ऊगियो, उगन्ते परभान जिने०॥ पान भलाजी पनवाडका, फूल भला अजमेर जिने०॥ सगली गोठ्या को अविचल राज, सगला पचाको प्रविचल राज होय । जिने ॥ चार दान द्यो भाव सो, सुपात्र कुपात्र ने जान ॥ जिने । लाडू चढाके घर गया, घर घर बूरा भात ॥ जिने ॥ पण्डिता ने निर्मल धोवती, गरा न औषध दान ।। जिने ॥ जो यो लाडू गायसी, ताकै पढत सुनत सुख होय ॥जिने०॥ म्हैं गायोछ म्हाका भाव सो, म्हाके घर आनन्द उछाह जिने। १ तीसरा । २ यहा जयपुर मे ऐसा भी पाठ बोलते हैं - सातवो लाडू जयपुर चढ्यो, सवाई जयपुर के मन्दिरा माहिं ।जिने। इसी प्रकार हरेक स्थान पर मूलनायक प्रतिमा का नाम बोलते हैं। ३ ठीक । ४ प्रात काल का । ५-६ सव ।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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