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________________ षट इनके प्रतिपक्षी लेकर यों बारह चितमें धरना । अवग्रहादि चारो से गुरणकर फिर मनइन्द्री से गुरणना ॥६॥ सवैय्या १७.इह विध अर्थ प्रवग्रहके भेद भये सब दोस अठासी बखानो। १८.मन अरु चक्षुको छोड़ गुनो अड़तालिस भेद सुव्यजन जानो १९ यो सब तीनसँछत्तिस भेद भये मतिज्ञानके चिसमे प्रानो। २०.पूर्व कहो श्रुतज्ञान सु ताके भेद अनेक हु बारह मानो ७॥ २१.नारकि देवकों होत भवोरक्षय उपशम कर्मर कारण जानो। शेषन के षट भांति सुज्ञात कहो सुअवधिवल ज्ञान बखानो। २३ ऋजुमति और विपुल मनपर्यय भेद कहे दो बेद कहानो॥ २४ अप्रतिपाति विशुद्ध के कारण इन दोनो मे विशेषता जानो दोहा-२५, विशुद्ध क्षेत्र स्वामी विषय, चारो कारण लेख । मनपर्जय अरु अवधि के जानो भेद विशेष ॥६॥ २६. मति श्रुति जानत नेम है द्रव्यन विर्षे सु जान । थोडी पर्जायें लखै, द्रव्यन को पहिचान ॥१०॥ २७. रूपी पुद्गल जान पर पुदगल रूपी जीव । थोडी पर्जायों सहित जाने अवधि सदोष ।। ११ ॥ सूक्ष्म रूपी वस्तु जो अवधि लखाई देत । २८. तासु अनन्ते भागको मनपर्जय लखि लेत ।। १२॥ २६. सर्व द्रव्य पर्जायको केवल विषय विख्यात । ३०. मतिज्ञान से चार लों जुगपत जीव लहात ॥१३॥ ३१. मतिश्रुतिज्ञान र अवधि के तीन विपर्जय ज्ञान ।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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