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________________ ( ७६ । गजपुरी नगरी अवतरो, राजकरो बहु भाय, प्राणी सोलह क रण भाइयो, धार मुनो अधिकाय, प्रारणी वरत.।२७ मुनि सङ्घाटक प्राइयो, माली मार जनाय, प्रारणी राजा बन्दो भाव मों, पुण्य बडो अधिकाय, प्राणी वर.॥२८॥ राजा मन वैरागियो, सयम सीनो मार, प्राणी पाठ सहन्न नृप सायने,यह समार अमार, प्राणी दर.।२६। फेवलज्ञान उपार्ज के, दोय महत्र निर्वाण,प्राणी दोय सहन-मुख म्वर्ग के,भोगे भोग मुयान, प्राणी वर ॥३०॥ चार सहस्त्र भू-लोक मे हण्डे बहु ससार,प्राणी काल पाय शिवपुर गये, उत्तम धर्म विचार, प्राणी वर.॥३१॥ परत पठाई जे करें, तीन जन्म परमाण, प्राणी लोकालोक जु जारणही, सिद्धारथ कुल कारण, प्राणी वर.३२ भव समुद्र के तरण को, बाग्न नौका जाल, प्रारणी जो जिय करें म्वभाव सो,जिनवर सांच वखान, प्राणी वर..३३ मन घच काया जे पढे,ते पाये भवपार, प्राणी विनयकीति मुखों भणे, जनम सफल संसार,प्राणी घरत माई जे पहै, ते पावै भयपार, प्राणी वरत.१३४६ पद्मावती स्तोत्र जिन शामनी हंसासनी पद्मासनी माता । भुज चारते फल चार दे पद्मावती माता ।टेका
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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