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________________ मुनिवर बोले सुन राणी, नन्दीश्वर को जात,प्राणी जै नर करहि स्वभाव सो, ते पावे शिवकात, प्रारणी वरता५ यह वचन राणो सुनो, मन मे भयो प्रानन्द, प्राणी नदोश्वर पूजा करें, ध्यावें आदि जिनेन्द्र, प्राणी वरत।।६।। कार्तिक फागुन साढ मे, पालें मन वच देह, प्राणी पसु दिवस पूजा कर. तीन भवातर लेय, प्राणो ।वरत.॥७॥ विद्यापति सुनि चालियो,रच्यो विमान अनूप, प्राणी राणी बरजे राय को, तू तो मानुष भूप, प्राणी विरत।८।। मानुषोत्र लवत नहीं मानुष जेतो जात प्रारणो जिनवारणी निश्चय सही, तीन भवन विख्यात, प्रारणो वर.६ । सो विद्यापति ना रहो, चलो नन्दोश्वर द्वीप, प्राणी मानुषोत्रगिरिसो मिलो, जाय न मान महीप, शारगी पर।१०। मानुषोत्र की भेटते, परयो धरणि सिर भार,प्राणी विद्यापति भव चूरियो, देव भयो सुरसार, प्राणी वरत।११॥ दीप नन्दीश्वर छिनक मे, पूजा घसु विषि ठान, प्राणी करी सु मन वचकाय से, मालादई करमान, भारणी वर१२। प्रानन्द सो फिर घर प्रायो, नन्दीश्वर कर जात, प्राणी विद्यापति का रूप कर, पूछो राणी बाल, प्रारणी बरत.१३, राणी बोली सुरण राजा, यह तो कबहूँ न होय, प्राणी जिनवारणी मिथ्या नही, निश्चय मनमे सोय, प्राणी वर.।१४। नन्दीश्वर की जयमाला, राय दिखाई धान, प्राणी अबतू साचो मोहि जाणो, पूजन करी बहुमान, प्राणी व.।१५
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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