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________________ (३० ) अन्नममय में ये शुभ भावहि, होवे यानि नहाई। वर्ग मोलफल ताहि दिखाव, ऋद्धि देहि अधिकाई ।। बोटे भाव नकल जिय त्यागो, टम्मे नमता लाके । जामेती गति चार दूर कर, वमो मामपुर जाके ।। २८ ।। मन चिन्ता करके तुम चिनो, ची पाराधन भाई । ये ही तो मुम्ब को दाता, और हितू कोउ नाहीं ॥ प्रागे बहु मुनिराज भय है, तिन गहि थिरता भारी । बहु उपनगं महै शुभ भगवन, प्राराधन उरवारी ।।२६।। तिनमे क्छुइक नाम कहूँ मैं सुनो जिया चित लाके । भावमाहित अनुमोदे तामे, दुगति होय न जाके ॥ अरु समता निज उरमे पावं, पाद अधोरज जावे । यों निशदिन जो उन मुनिवरको, ध्यान हिये बिच लावे ।३०। घन्य धन्य सुकुमाल महामुनि, कने घोरज धारी । एक श्यालनी युगबच्चायुत पाव भत्यो दुखकारी ।। यह उपमर्ग मह्यो घर थिरता, प्राराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दुख है मृत्यु महोत्सव वारी ॥३१।। धन्य धन्य जु मुकौशल स्वामी, व्यानीने तन खायो । तो भी श्रीमुनि नेक डिगो नहि, आतमसो हित तायो । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, पाराधन चित धारी । तो तुमरे जिय कौन दु.ख है, मृत्यु महोत्सव बारी ॥३२॥ देखो गजमुनिके सिर ऊपर, विप्र प्रगनि बहु बारी । शीश नल जिमि लकड़ी तनको, तो भी नाहि चिगारी ॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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