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________________ ( १३ ) अथ पञ्चम वन्दना कर्म चन्टू मै जिनवर धोर महावीर सुसन्मति । वर्द्धमान प्रतिवोर बन्दि हौं मनवचतनकृत || त्रिशलातनुज महेश धीश विद्यापति बन्टू । बन्दु नितप्रति कनकरूपतनु पाप निकन्दू |२१| सिद्धारथ नृपनद द्वन्द्व दुखदोष मिटावन । दुरित दवानल ज्वलित ज्वाल जगजीव उधारन || कुण्डलपुर करि जन्म जगतजिय श्रानन्दकारन । वर्ष बहत्तर श्रायु पाय सबही दुख टारन | २२| सप्त हस्त तनु तुंरंग भग कृत जन्म मररण भय । बालब्रह्ममय ज्ञेय हेय प्रदेय ज्ञानमय || दे उपदेश उधारि तारि भवसिंधु जीवधन । श्राप बसे शिवमाहि ताहि बन्दों मनवचतन | २३ | जाके बन्दनथकी दोष दुख दूरहि जावे | जाके बन्दनथकी मुक्ति तिय सन्मुख श्रावे || जाके बन्दनथकी बन्ध होवे सुरगन के । ऐसे वीर जिनेश वदि हूँ पदयुग तिनके । २४ । सामायिक षट्कर्ममाहि बन्दन यह पञ्चम | बन्दे वीरजिनेन्द्र इन्द्रशतवंद्य वद्य मम ॥ जन्म मरण भय हरो करो अघ शात शातिमय । मैं अधकोश सुपोष दोषको दोष विनाशय ॥२५॥ अथ पष्ठम कायोत्सर्ग कर्म कायोत्सर्ग विधान करूं श्रन्तिम सुखदाई । काय त्यजनमय होय काय सबका दुखदाई । पूरव दक्षिरण नमू दिशा पश्चिम उत्तर में । जिनगृह बन्दन करू हरू भव पापतिमिर
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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