SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ -१३ [ प ] जय मात लक्ष्मण के सपूत । चन्द्रप्रभ स्वामी गुरण प्रफूत । है चन्द्र चिह्न शोभा प्रवार। जय श्वेत वरण तन दिनार । जय भवतन भोग विराग वित्त। तप धरी जाय वन हो विरक्त । घातिया फरम चकचूर झाप पायो सुबोध केवल प्रताप | भवि जीवन को शिव पथ लगाय । सम्मेदावल पर गये श्राय । कहा ललित कूट सुन्दर सुधान। पार्यो वहां से शिव पद महान गुरु समतभद्र तुम ध्यान फोन । प्रगटो प्रतिमा शिव पक्षीण । जिनधर्म ध्वजा जग लहलहाय । मैं नमों चरण चतु श्रंगनाथ । || राजे बहार ॥ शान्तिनाथ पद पूजिये, शान्ति हेतु भवि लोय ॥१॥ नगर हस्तिनापुर महा ऐरा देवी मात । पिता नृपति विश्वसंन गृह, प्रगट भये शुभ गात | शान्तिनाथ कामदेव चत्री भये, छहों खण्ड का राज | नव निधि चौदह रतन के, धारी श्री जिनराज || शान्तिनाथ || सब विभूति को त्याग के, वन जा फोनो ध्यान | घाति घातिया ध्यान वल, पायो केवल-ज्ञान ||शान्तिनाथ ।। पुन गये सम्मेदगिरि, कुन्द प्रभु शुभ फूट 1 योग निरोध स्वध्यान बल, सब कर्मों से छूट || शातिनाथ ।। सिद्धि निरजन जगपति, ध्यान करें जो कोय ॥ मिटे असाता क्षणिक मे, बहु सुख साता होय || शातिनाथ || [ छन्द त्रोटक ]
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy