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________________ - - २०६ ] जिन पूजा ते स्वर्ग विमान, अनुक्रन पावै निर्वाण ।।१७।। मै श्रायो पूजन के काज, मेरो जन्म सफल भयो आज । पूजा करके नवाऊ शीश, मुझ अपराध क्षमहु जगदीश ।१८। दोहा-सुख देना दुख मेटना, यहो तुम्हारी वान । मो गरीब की वीनती, सुन लीज्यो भगवान ।।१६॥ पूजन करते देव की, प्रादि मध्य अवसान । सुरगनके सुख भोग कर, पावं मोक्ष निदान ॥२०॥ जैसी महिमा तुम विर्ष, और धरै नहिं कोय । जो सूरज मे जोति है, नहिं तारागरण सोय ।।२१।। नाथ तिहारे नामत, अघ छिनमाहि पलाय । ज्यो दिनकर परकाशत, अन्धकार विनशाय ।।२२।। बहुत प्रशंसा क्या करू , मै प्रभु बहुत अजान । पूजाविधि जानू नहीं, शरण राखि भगवान ।।२३।। इस अपार संसार मे, शरण नाहि प्रभु कोय । यात तव पद भक्त को, भक्ति सहाई होय ।२४।इति। विसर्जन-बिन जाने वा जानके, रही टूट जो कोय । तद प्रसाद ते परमगुरु, सो सब पूरण होय ॥१॥ पूजनविधि जानो नहीं, नहिं जानो आह्वान । और विसर्जन हू नहीं, क्षमा करहु भगवान ।।२॥ मन्त्रहीन धनहीन हूं, क्रियाहीन देनदेव । क्षमा करहु राखहु मुझे, देहु चरणको सेव ॥३॥ ध्याये जो-जो देवगण, पूजे भक्ति प्रमाण ।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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