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________________ mmm - - - - - - तो मुनि नाये हथनापुर के बीच मे । मुनि बचाये रक्षा कर बन बीच मे ॥१॥ तहाँ भयो आनन्द सर्व जीवन धनो। जिन चिन्तामणि रत्न एक पायो मनो ।। सब पुर जै-जैकार शब्द उचरत भये । मुनिको देय पाहार प्राप करते भये ॥२॥ *ही श्रीविष्णुकुमारमुनि अत्र अवतर अवतर सवौषट्, इति आह्वानन । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ प्रतिस्थापन । अत्र मम सन्निहितो भव भव सन्निधिकरण। प्रथाष्टक । चाल - सोलह पूजा की। गगाजल सम उज्ज्वल नीर, पूजो विष्णुकुमार सुधीर । दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय ।। सप्त सैकड़ा मुनिवर जान, रक्षा करी विष्ण भगवान । दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय ।। ॐ ह्री श्री विष्णुकुमारमुनिभ्य नम जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल । मलयागिर चन्दन शुभसार, पूजों श्रीगुरुवर निर्धार । दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय ।।सप्त..दया।। ॐ ह्री श्रीविष्णुकुमारमुनिभ्य नम भवता विनाशनाय चन्दन नि । श्वेत अखडित अक्षत लाय, पूजो श्रीमुनिवर के पाय । दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय ।सप्त ॥दया। ॐ ह्री श्रीविष्णुकुमारमुनिभ्य नम अक्षयपदप्राप्तये प्रक्षत नि० । कमल केतको पुष्प चढ़ाय, मेटो कामबाण दुखदाय । दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय ॥सप्त ॥दया.।।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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