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________________ । १६६ ॐ ह्री श्रीवासुपूज्यनिर्वाणस्थान चम्पापुरक्षेत्राय पूर्णाय । दोहा-श्री चम्पापुर जो पुरुष, पूजे मन वच काय । वरिण 'दौल' सो पावही, सुख सम्पति अधिकाय ।। इत्याशीर्वाद । श्री गिरनार पूजा (स्व० कवि जवाहरलाल कृत ) छप्पय-श्री गिरनार शिखर परवत, दक्षिण दिश सोहे। नेमिनाथ जिन मुक्तिधाम, सब जन मन मोहे ।। कोड बहत्तर सात शतक, मुनि शिवपद पायो । ता थल पूजन काज, भविक चित अति हर्षायो ।। तिस तीरथराज सु क्षेत्र को, अाह्वानन विधि ठानकर । पूज त्रियोग मनवचनतन, श्रावकजन गुन गानफर ॥२॥ ॐ ह्री श्री नेमिनाथ शबुकुमार प्रद्य म्नकुमार अनिरुद्धकुमार और बहत्तर करोड सातसे मुनि मोक्षपद प्राप्तिस्थान श्रीगिरनार सिद्धक्षेत्र पत्र अवतर २ सवौषट् आह्वाननं । प्रत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापन । मन मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरण । प्रभु तुम राजा जगत के, कर्म देहि दुख मोय । करू यथारथ वीनती, हमपं करुणा होय ॥ चाल लावनी की। तोरथ गढ गिरनार को, नित पूजो हो भाई। हेम मुंग भर तीर्थादिक, शुभ प्रासुक पावन लाई ॥ जन्म जरा मत नाशन कारन, धार देह ढरकाई॥नित०
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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