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________________ 1७ सर्वोषधी मिला के, भरि कंचन भृङ्गार । जर्जी चररण श्रय धार दे, तारतार अवतार ||६|| ॐ ही श्रीमत भगवन्त सबलमायार्थमय सर्वोपधिभ्यामभिषिच्ये । विनय पाठ दोहा इह विधि ठाडो होय के प्रथम पढे जो पाठ | धन्य जिनेश्वर देव तुम, नाशे कर्म जुम्राठ ॥१॥ अनन्त चतुष्टय के धनी, तुमही हो सिरताज । मुक्तिव के कंय तुम, तोन भुवन के राज ॥२॥ तिहुं जरा को पोड़ा हरम भवदधि शोषणहार । ज्ञायक हो तुम विश्व के, शिव सुख के करतार ||३|| हरता प्रघ-प्रधियार के, करता धर्म प्रकाश । थिरतापद दातार हो धरता निज गुण राश ॥४॥ धर्मामृत उर जलधिसो, ज्ञान- भानु तुम रूप । तुमरे चरण सरोज को, नावत तिहू जग भूप ॥५॥ मैं बन्दों जिनदेव को, कर प्रति निर्मल भाव । कर्मबंध के बने, पोर न कछू उपाव ॥६॥ भविजन को भवकूपते, तुमही काढनहार । दीनदयाल अनाथपति, प्रातम गुरण भडार ॥७॥ चिदानद निर्मल कियो, धोय कर्म रज मैल 1 सरल करो या जगतमे, भविखनको शिव गैस || 5 || तुम पद पंकज पूजतें, विघ्न रोग टल जाय ।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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