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________________ 1१५७ ARRANASAN जय माल लक्ष्मणा गोद पाय, नाना क्रीड़ा फोनी जिनाय । देवन कुमार संग सेन कोन, प्रभु वृद्धि भये मन मोद नीन ।। दश लक्ष पूर्व पप लही श्राप, रहे इन्द्र अमरगरण सदा साथ । ले राज्य भार चिरकाल कोन, जानो नहिं काल व्यतीत हीन ।। मन वस्त्र प्राभरण देव लाय, श्रीजिन को संतोषित कराय । इदिन शृगार फरी जु नाथ, दपगमे लख निज मुख सु प्राप।। एक चिह्न जु मुखपर लख प्रवीन, भव भोगन वाछा छोडदीन । वर चन्द्र पुत्र को राज्य देय, सम्बोधित ह्व प्रभुजी स्वयमेव ।। 'विमला' जु पालकी मे बिठाय, ले गये नाथ को इन्द्र प्राय । सर्वतुक वन वीक्षा मुलीन, सह इक हजार राजा प्रचीन । कर पन मुन्ठि से लोन फेश, धारो ज दिगम्बर नग्न वेश । था नलिन नगर पुर का सुराय, तसुनाम सोमदत्तजी कहाय ।। फोनो ज पारनौ तास गेह, जहाँ रत्नो फा वरसा जु मेह । फिर प्रारमध्यान मे भये लोन, लहि केवल कोने कर्म छीन ।। कोनो विहार भारत जु वर्ष, यह पुण्य धरा प्रघटी प्रत्यक्ष । धर्मोपदेश से भव्य तार, प्राये सम्मेद शिखर पहार ॥ तहाँ योग नियोग किये जु सार, पहुंचे प्रभु मोक्षमहल मझार यह पचम दुखमा काल जान, हुई धर्म कर्म सवको जु हान ।। इस नगर तिजारा मध्य सेत, देहरा पवित्र सुन्दर सुक्षेत्र । श्रावण शुक्ला दशमी अनूप, बर वार वृहस्पति शुभ स्वरूप। सम्बत् तेरह दो सहस वर्ष, मध्याह्न समय अभिजित मुहूर्त । जिन प्रकट भये अतिशय सरूप,दिखलाया अपना दिव्य रूप ॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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