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________________ प्रतिशय क्षेत्र श्रीपद्मपुरा में विराजित श्रीपद्मप्रभ जिन पूजा [ १४५ श्रीधर नन्दन पद्मप्रभ, वीतराग जिननाथ । विधन हरण मंगल करन, नमो जोरि जुग हाथ ॥ जन्म महोत्सव के लिए मिलकर सब सुर राज । आये कौशाम्बी नगर, पद पूजा के काज ॥ पद्मपुरी मे पद्मप्रभ, प्रकटे प्रतिमा रूप परम दिगम्बर शान्तिमय, छवि साकार अनूप ॥ हम सब मिल करके यहां, प्रभु पूजा के काज । श्राह्वान करते सुखद, कृपा करो महाराज ॥ ॐ ह्री श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र । ग्रय प्रवतर श्रवतर, सवीपट् । ॐ ह्री श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र । श्रथ तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापन | ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र । श्रथ मम सन्निहितो भव भव वपट् । प्रष्टक क्षीरोदधि उज्ज्वल नीर, प्रासुक गन्ध भए । कचन झारी से लेय, दोनी धार धरा ॥ वाडा के पद्म जिनेश, मंगल रूप सही । काटो सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही ॥१॥ ॐ ही श्रीपद्मप्रभ - जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल नि० । चन्दन केशर करपूर, मिश्रित गन्ध धरो । शीतलता के हित देव, भव श्राताप हगे || वाडा के० ॥ ॐ ह्री श्रीपद्मप्रभ- जिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चन्दनम् नि० । ले तन्दुल अमल अखण्ड, थाली पूर्ण भरो । प्रक्षय पद पावन हेतु, हे प्रभु पाप हरो || बाडा के० ॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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