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________________ [ ५ धन्य-धन्य जिनराज लोक में वसुविध कर्म जलावन हारे ॥ इति पठित्वा जिनबिम्वस्य सम्मार्जनं करोम्यहम् । दोहा - मार्जन, करि वेदी विषे सिहासन परि थापि । • www प्रातिहार्य युत निरख जिन, यजन करो गुन जापि ॥ ॥ पुष्पाजलि ॥ लघुपंचामृताभिषेक भाषा शुद्ध घृत दुग्ध आदि से पञ्चामृत अभिषेक करना हो तो यह पाठ बोलना अथवा पंचामृत के प्रभाव मे सिर्फ जलधारा से काम लेना । दोहा - श्रीजिनवर चौबीस वर, कुनयध्वांतहर भान । १ श्रमितवीर्यदृगवोधसुख, -युत तिष्ठौ इहि थान ॥ t 1 नाराच छन्द गिरीश शीस पाडुपे, सचीश ईश थापियो । महोत्सवो अनदकन्दको, सबै तहा कियो || हमे सो शक्ति नाहि व्यक्त देखि हेतु श्रापना | , यहा करे जिनेन्द्रचन्द्रकी, सुविस्त्र थापना || पुष्पाजलि क्षेपणकर श्रीवर्णपर जिनबिम्व की स्थापना करे । कनकमणिमय कुंभ सुहावने, हरि सुक्षीर भये प्रति पावने । } 1 1 " हम, सुवामित नीर यहाँ भर, जगतपावन-पाय तर घरं ||३|| पुष्पाजलि क्षेपणकर वेदी के कोनो मे चार कलश स्थापित करें | शुद्धोपयोग समान भ्रमहरु परम सौरभ पावनो । प्राकृष्ट भृङ्ग समूह, गग- समुद्भवो प्रति भावनो ।। मरिकनककुम्भ निशुम्भकिल्विष, विमल शीतल भरि घरों । 1 ""
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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