SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १२९ दशगंधहुतासन माहि, हे प्रभु खेवतु हौं । मम करम दुष्ट जरि जाहि, यात सेवतु हौं ॥धीचं.॥ ॐ ह्री श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूप नि० स्वाहा । अति उत्तमफल सु मंगाय, तुम गुरणगावत हौँ । पूजौं तन मन हरषाय, विधन नशावतु हौं ॥श्रीचं.८॥ ॐ ह्री श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल नि० स्वाहा। सजि पाठों दरब पुनीत, पाठों अंग नमो। पूजो अष्टमजिन मीत, अष्टम अवनि गमो॥श्रीच.६।। ॐ ह्री श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्रायाऽनय॑पदप्राप्तये अर्घ्य नि० स्वाहा। (पञ्चकल्याणक अर्घ] [छन्द द्रुतविलवित तथा सुन्दरी मात्रा १६] कलिपचमचैत सुहात अली । गरभागम मगल मोद भली। हरि हर्षित पूजत मातु पिता । हम ध्यावत पावत शर्मसिता।। ॐ ह्री चैत्रकृष्णापञ्चम्या गर्भमङ्गलप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्रायाध्य कलि पौषइकादशि जन्म लयो, तब लोकविर्ष सुखथोक भयो। सुर ईश जज गिरशीश तबै । हम पूजत हैं नुतशीश अब ।२। ॐ ह्री पौषकृष्णकादश्या जन्ममगलप्राप्ताय श्रीचंद्रप्रभजिनेन्द्रायाध्य । तप दुद्धर श्रीधर आप धरा । कलिपौष इग्यारसि पर्व वरा॥ निजध्यानविष लवलीन भये । धनि सोदिन पूजत विघ्न गये। ॐ ह्री पौषकृष्णकादश्या तप मगलमडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्रायाध्य । वर केवलभानु उद्योत कियो । तिहुँलोकतणो भ्रम मेट दियो। कलि फाल्गुनसप्तमि इन्द्र जजे । हम पूजहिं सर्वकलंक भजे ॥ ॐ ह्री फाल्गुनकृष्णासप्तम्या केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीचद्रप्रभजिनेन्द्रायाऱ्या
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy