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________________ { itc माता सायं चरपरो, फिर नागं रान सन्ताप हो । प्रभु ! जो ननो तातो भयं फिर उपजे तन सताप हो म्हा मुए भूत्यो रह्यो फेर नियमन फोन उपाय हो । कठिन करो, असे निसरं जतीने तार हो ॥हा॥ प्रभु फिर निकत हो रयां पडो फिर लागोनूल पार हो रोम-रोम घलो. दुप येवनमो नहि पार हो ● 1 प्रभु ! मैटन गम, पातं लागू तिहारे पनि हो । सेवक प्ररज करें प्रभु मोक्षं, भयोरपि पार उतार हो हा - पीजी को महिमा गम है न पा पार । मैं पति पत्ष प्रज्ञान हो, गोन करें विस्तार || श्री श्रीपाद नामोति व्याहा । दोहा-विनती जिनेश को, जो पटुसो मन लाय । स्वर्गों में तय नहीं, निश्चय शियपुर जाय ॥ इत्यादिः #1 पञ्चवालयती तीर्थकर पूजा दोहा - योजिन पञ्च नंगजित, वामुपूज्य मलि नेम । पारसनाथ सुवोर प्रति, पूर्ण चित घरि प्रेम ॥ ही पाज्ञाननं । चत्र चप गरि । तो मनात प्रयारत संदीपट् निश् ठ स्थापन | राम त्रिदिना , शुचि शोतल सुरभि सुनीर लायो भर भारी । दुख जामन मरन गहीर, याको परिहारो ॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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