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________________ पन्चान्याय नर्यातिद्धितं दये, मरदेवी उर माय । दोन sfer घावाटको नजू तिहारे पाय || ॐ से पापापादिना गापामा श्रोपादिनाना। संत वदी नौमी दिना, सम्या श्रीभगवान । सुरपति उत्सव प्रति वरघा, में पूजो पर ध्यान ॥ होना माना श्री पादिनाप नेमिनिस्वाहा । नृपवद ऋषि छांड़िये, तप पारधी बन जाय । नमो त घमेत की, व तिहारे पयि ॥ ॐ ही नवम्यां वानराणाद भी सादिनागनिमोनिया। free 1 ११७ फाल्गुन यदि एफादशी, उपज्यो देवलज्ञान । इन्द्र प्राय पूजा करो, में पूजों यह पान ॥ फागुन कप्राणाय श्रीमादिनान्द्राय पध्ये नवपामीनि व्याहा । माघ चतुर्दशि कृष्णकी, मोक्ष गये भगवान । भय जीवो को बोधिके, पहुँचे शिवपुर धान ॥ ॐ हो या गीताकापाय श्रोपादिनाथ जिनेन्द्राय पच्यं निर्वपामीति व्याा । जयगाना प्राोश्वर महाराज में विनती तुमसे करें । चारों गति के माहि में दुख पायो सो सुनो ।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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