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________________ १०६ ह्री पाच भरत पाँच ऐगवत क्षेत्र सम्बन्धी तीम चौबीमी के सात सा वीम जिनेन्द्रेभ्य नम चन्दन निर्व० । चन्द्रमम तन्दुल सारं, किरण मुक्ता जु उनहार । पुञ्ज तुम चरढिग पारं,अक्षयपद प्राप्तिके कार द्वोप०।। ॐ ह्री पांच भगत पाँच ऐगवत क्षेत्र सम्बन्धी तीम चौवीमी के सात मो बीम जिनेन्द्रेभ्य नम अक्षत नि० । पुष्प-शुभ गन्धजुत सोहे, सुगन्धित तासु मन मोहे । जजत तुम मदन क्षय होवे, मुक्तिपुर पलकमे जोवे द्वीप०॥ ॐ ह्री पात्र भरत पाँच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी तीम चौवीमी के मात मी वीस जिनेन्द्रेभ्य नम पुप्प निर्व० । सरम व्यजन लिया ताजा, तग्त वनवाइया खाजा । चरन तुम जजत महाराजा क्षुधादग्व पलकमे भाजाराद्वीप०॥ ह्री पांच भरत पांच ऐगवत क्षेत्र सम्बन्धी तीस चौवीमी के मात मो वीम जिनेन्द्रेभ्य नम नैवेद्य निर्व०।। दीप तम नाशकारी है, मुरभिजुत ज्योतिधारी है । दशों दिश कर उजारी है, धूम्र मिस पाप छारी है ।।द्वीप०॥ ॐ ह्री पांच भग्त पांच ऐगवन क्षेत्र सम्बन्धी तीम चौवीमी के सात मी बीम जिनेन्द्रेभ्य नम दीप निर्व० । सुगन्धित धूप दश अंगी. जलाऊँ अग्नि के मगी। करम की मन्य चतुरगी, पूजते पाप सव भगी ॥द्वीप०॥ ___ॐ ही पांच भग्न पाँच ऐगवन क्षेत्र सम्बन्धी तीम चौबीसी के मान मी बीम जिनेन्द्रभ्य नम धूप निर्व। मिष्ट उत्कृष्ट फल ल्यायो, प्रप्ट अरि दुप्ट नशवायो । घोजिन भेंट घरवायो, कार्य मनवांछता पायो द्वीप०॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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