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________________ 1 1 * ॥ श्रीतरागाय नमः ॥ * नित्य पूजा * ॐ नमः सिद्ध ेभ्य. ॐ नमः सिद्ध ेभ्यः ॐ नमः सिद्धो भ्यः परविवि पञ्चपरमगुरु गुरु जिन शासनो, सकल सिद्धि दातार सु विधन विनाशनो । शारद श्ररु गुरु गौतम सुमति प्रकाशनो, मङ्गल कर चउ सङ्घहि पाप परणासनो | पापहि परणासन गुणहि गरुश्रा, दोष भ्रष्टादश - रहिउ । घरि ध्यान कर्म विनाशि केवल ज्ञान प्रविचल जिन लंहिउ । प्रभु पञ्चकल्याणक विराजित सकल सुर-नर घ्यावहीं, त्रैलोक्यनाथ सुदेव जिनंबर जगत मङ्गल गावहो । उदक-चन्दन- तंदुल पुष्पकैश्चरु- सुदीप - सुधूप - फलार्धकः । घवल- मङ्गल गान - रवाकुले जिनगृहे पञ्चकल्याण मह बजे || F ॐ ह्री श्री भगवान के गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पञ्च कल्याणकेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा । 1 ,7" : • अभिषेक पाठ If r श्रीमज्जिन तुम चरण नख, नथ्य कज हित सूरि । विघ्न-शिलोच्चय दलन पवि, नमूं हरन भव भूरि ॥१॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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