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________________ ९९ कामिनी मोहनी छन्द परम उत्कृष्ट परमेष्ठी पद पांच को, नमत शत इन्द्र खगवृन्द पद साँच को। तिमिर अघ-नाश करणार्थ तुम अर्क हो, अर्घ लेय पूज्य पद देत बुद्धि तर्क हो । ॐ ह्री सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थाय पचपरमेष्ठिपरमदेवाय अध्यं । सुन्दरी छन्द सुभग सम्यक् दर्शन ज्ञान जू, कह चारित्र सुधारक मान जू । अर्घ सुन्दर द्रव्य सु आठ ले, चरण पूजहुँ साज सु ठाठ ले ॥ ॐ ह्री सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थेभ्यो सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रेभ्योऽध्य० । हरिगीता छन्द ' भवनवासी देव व्यन्तरज्योतिषी कल्पेन्द्र ज, जिनगृह जिनेश्वर देव राज रत्नके प्रतिविम्ब न । तोरण ध्वजा घण्टा विराज चँवर ढरत नवीन जू, वर अर्घले तिन चरण पूजों हर्ष हिय प्रति लीन ज ।। ॐ ह्री सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थेभ्य भवनेन्द्रव्यतरेन्द्र-ज्योतिषेन्द्र-कल्पेन्द्रचतु प्रकारदेवगृहेभ्य श्रीजिनचैत्यालयसंयुक्तेभ्यो अर्घ्य नि० । दोहा-प्रवधि चार प्रकार मुनि, धारत जे ऋषिराय । अर्घ लेय तिन चरण जजि, विधन सघन मिट जाय ॥ ॐ ह्री सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थेभ्य चतु.प्रकारअवधिधारकमुनिभ्योऽयं० भुजङ्गप्रयात छन्द कही पाठऋद्धि घरे जे मुनीश, महाकार्यकारी बखानी गनीशं । जल गंध आदि दे जजो चर्न नेरे, लहो सुक्ख सगरे हरों दुःख फेरे ॐ ह्री सर्वोपद्रवविनाशनसमर्थेभ्य अष्टऋद्धिमहितमुनिभ्यो अध्यं ।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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