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________________ जैन-समाजका हास क्यों ? खतरा नहीं है। धार्मिक पक्षपात और मज़हबी दीवानगीका समय बहगया । अब हरएक मनुष्य सत्यकी खोजमें है । बड़ी सरलतासे जैनधर्मका प्रसार किया जा सकता है । इससे अच्छा अनुकूल समय फिर नहीं प्राप्त हो सकता । जितने भी समाजसे बहिष्कृत समझे जा रहे हैं, उन्हें गले लगाकर पूजा प्रक्षालका अधिकार देना चाहिए। और नवदीक्षाका पुराना धार्मिक रिवाज पुनः जारी कर देना चाहिए । वर्चमानमें सराक, कलार श्रादि कई प्राचीन जातियाँ लाखोंकी संख्या में हैं, जो पहले जैन थीं और अब मर्दुम शुमारीमें जैन नहीं लिखी जाती हैं, उन्हे फिरसे जैनधर्ममें दीक्षित करना चाहिए । इनके अलावा महावीरके भक्त ऐसे लाखों गूजर मीने आदि हैं जो महावीरके नाम पर जान दे सकते हैं , किन्तु वह जैनधर्मसे अनभिज्ञ हैं वे प्रयत्न करने पर उनके गाँवोंमें जैनं रात्रिपाठशालाएँ खोलने पर आसानीसे जैन बनाए जा सकते हैं। हमारे मन्दिरों और संस्थानों में लाखों नौकर रहते हैं मगर वह जैन नहीं हैं। जैनोंको छोड़कर संसारके प्रत्येक धार्मिक स्थानमें उसी धर्मका अनुयायी रह सकता है, किन्तु जैनोंके यहाँ उनकी कई पुश्तें गुजर जाने पर भी वे अजैन बने हुए है । उनको कभी जैन बनानेका विचार तक नहीं किया गया । जलमें रहकर मछली प्यासी पड़ी हुई है। जिन जातियोंके हाथका छुश्रा पानी पीना अधर्म समझा जाता हैं, उनमें लोग धड़ाधड़ मिलते जा रहे हैं । फिर जो जैन समाज खान, पान रहन, सहनमें श्रादर्श है, उच्च है और अनेक आकर्षित उसके पास साधन है, साथ ही जैनधर्म जैसा सन्मार्ग प्रदर्शक धर्म है; तब उसमें
SR No.010296
Book TitleJain Samaj ka Rhas Kyo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1939
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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