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________________ जैन-समाजका हास क्यों ? ' ૨૭ साथ सुनि, होगया और तप करके सर्वार्थसिद्धि गया । वेश्यागामी चारुदत भी मुनि होकर सर्वार्थसिद्धि गये । (१३) यमपाल चाण्डाल जैन-धर्मकी शरणमें आनेसे देवों द्वारा पूजनीय हुअा।” (पृ० ११ और ४३) इन पौराणिक उदाहरणोंके अतिरिक्त अनेक दीक्षा प्रणालीके" . ऐतिहासिक उदाहरण भी मिलते हैं : वि० सं० ४०० वर्ष पूर्व श्रोसिया नगर (राजपूताना) में पमार राजपूत और अन्य वर्ण के मनुष्य रहते थे । सब वाममार्गी थे और माँस मदिरा खाते थे, उन सबको लाखोंकी संख्यामें श्री० रत्नप्रभुसूरिने जैन-धर्ममें दीक्षित किया । ओसिया नगर निवासी होनेके कारण वह सब अोसवाल कहलाये । फिर राजपूतानेमें जितने भी जैन-धर्ममें दीक्षित हुए, वह सब : अोसवालोंमें सम्मलित होते गये । ' संवत् ९५४ में श्री० उद्योतसूरिने उज्जैनके राजा भोजकी सन्तानको (जो अवमथुरामें रहने लगे थे और माथुर कहलाते थे) जैन बनाया और महाजनोंमें उनका रोटी-बेटी सम्बन्ध स्थापित किया । सं० १२०६ में श्री० वर्द्धमानसूरिने चौहानोंको और सं० ११७६ में जिनंवल्लभसूरिने परिहार राजपूत राजाको और उसके कायस्थ मंत्रीको जैनधर्ममें दीक्षित किया और लूटमार करने वाले खींची राजपूतोंको जैन बनाकर सन्मार्ग बताया। जिनभद्रसूरिने राठौड़ राजपूतों और परमार राजपूतोंको संवत् ११६७ में जैन बनाया। संवत् १२९६ में जिनदत्तसूरिने एक यदुवंशी राजाको जैन बनाया । ११६८ में एक भाटी राजपूत राजाको जैन बनाया।
SR No.010296
Book TitleJain Samaj ka Rhas Kyo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1939
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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