SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-समाजका ह्रास क्यों ? rammar ramwwwwwwwmum की तथा शूद्रकी कन्यासे विवाह कर सकता है, क्षत्रिय अपने वर्णकी तथा वैश्य और शूद्रकी कन्यासे विवाह कर सकता है और ब्राह्मण अपने वर्णकी. तथा शेष तीन वर्णोंकी कन्याओंसे विवाह कर सकता है। . इतना स्पष्ट कथन होते हुए भी जो लोग कल्पित उपजातियों में (अन्तर्जातीय) विवाह करनेमें धर्म-कर्मकी हानि समझते हैं, उनके लिये क्या कहा जाय ? जैनग्रंथोंने तो जाति-कल्पनाकी धज्जियाँ उड़ादी हैं । यथा . अनादाविह संसारे दुर्वारे मकरध्वजे कुने च कामनीमूले का जातिपरिकल्पना ॥ अर्थात्-इस अनादि संसारमें कामदेव सदासे दुर्निवार चला आरहा. है । तथा कुलका मूल कामनी है । तब इसके आधार पर जाति-कल्पना करना कहाँ तक ठीक है ? तात्पर्य यह है कि न जाने कब कौन किस प्रकार से कामदेवकी चपेटमें आगया होगा ? तब जाति या उसकी उच्चता नीचताका अभिमान करना व्यर्थ है । यही बात गुणभद्राचार्यने उत्तर पुराणके पर्व ७४ में और भी स्पष्ट शब्दोंमें इस प्रकार. कही है वर्णाकृत्यादिभेदानां देहेऽस्मिन्न च दर्शनात् । ब्राह्मण्यादिषु शूद्राद्यैर्गर्भाधानप्रवर्तनान् ॥४६॥ अर्थात्-इस शरीरमें वर्ण या आकारसे कुछ भेद दिखाई नहीं देता है । तथा ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्यों में शूद्रोंके द्वारा भी गर्भाधानकी प्रवृति देखी जाती है । तब कोई भी व्यक्ति अपने उत्तम या उच्च वर्णका अभिमान कैसे कर सकता है ? तात्पर्य यह है कि जो वर्तमानमें सदाचारी है वह उच्च है और दुराचारी है वह नीच है।
SR No.010296
Book TitleJain Samaj ka Rhas Kyo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1939
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy