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________________ उत्तरकालीन कर्म-साहित्य ४५३ परमानन्दजीने यह भी लिखा है । कि सकलकीतिके द्वारा प्रतिष्ठित मूर्तियोके कितने ही अभिलेख स० १४८० से १४९२ तकके मेरी नोटबुकमें दर्ज है। अत यह निश्चित है कि वे विक्रमकी १५वी शतीके उतरार्द्धके विद्वान है । उनके द्वारा रचित कुछ ग्रन्थोके नाम इस प्रकार है सिद्धान्तसार दीपक, धन्यकुमार चरित्र, कर्म विपाक, सद्भापितावली, धर्म प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, मूलाचार प्रदीप, सुकुमालचरित्र, जम्बूस्वामिचरित्र, श्रीपाल चरित्र, वृपभचरित्र, सुदर्शनचरित्र, वर्षमान पुराण, पार्श्वनाथपुराण, मल्लिनाथ पुराण, सारचतुर्विशतिका, यशोधरचरित्र पुराणसार आदि । सिद्धान्तसार भाष्य ___आचार्य जिनेन्द्र या जिनचन्द्र रचित सिद्धान्तसार पर एक सस्कृत व्याख्या है जो सिद्धान्तसारके साथ माणिकचन्द्र जैन ग्रन्थमाला वम्वईसे प्रकाशित हो चुकी है। व्याख्या साधारण होते हुए भी मूल ग्रन्थको समझने के लिये उपयुक्त है और उससे प्रतीत होता है कि टीकाकार प्रकृत विषयका अच्छा अभ्यासी है। ___ यद्यपि भाष्यकारने सिद्धान्तसारके भाष्यमें अपना कोई स्पष्ट परिचय नही दिया है, ग्रन्थके अन्तमें कोई प्रशस्ति भी नहीं दी है, तथापि मगलाचरणके श्लोकमें सिद्धान्तसार भाष्यके दो विशेषण दिये है-'लक्ष्मी वीरेन्दुसेवित' और 'ज्ञान सुभूपणम्'। इन विशेषणोके द्वारा लक्ष्मीचन्द, वीरचन्द और ज्ञानभूषण ये तीन नाम प्रकट होते है । अत प्रेमीजीने ज्ञानभूपणको भाष्यका कर्ता बतलाया है । सुमतिकीर्ति भट्टारकने प्राकृत पचसग्रहकी अपनी वृत्तिके अन्तमें जो प्रशस्ति दी है। उसमें उन्होने ज्ञानभूपणकी गुरु परम्परा इस प्रकार दी है—मूलसघमें उत्पन्न हुए नन्दिसघमें वलात्कार गण और सरस्वती गच्छमें आचार्य कुन्दकुन्द १ 'श्रीमूलसंघेऽजनि नन्दिसघो वरो वलात्कारगणप्रसिद्ध । श्रीकुन्दकुन्दो वरसूरिवर्यो बभौ वुधो भारतिगच्छ सारे ॥१॥ तदन्वये देवमुनीन्द्रवद्य श्री पद्मनन्दी जिनधर्मनन्दी। ततो हि जातो दिविजेन्द्रकीतिविधा (दि) नन्दी वर धर्ममूर्ति ॥२॥ तदीयपट्ट नृपमाननीयो मल्ल्यादिभूषो मुनिवदनीय । ततो हि जातो वरधर्मधर्ता लक्ष्मादिचन्द्रो बहुशिष्यकर्ता ॥३॥ पचाचाररतो नित्य सूरिसद्गुणधारक । लक्ष्मीचन्द्र गुरुस्वामी भट्टारकशिरोमणि ॥४॥ दुर्वारदुर्वादिकपर्वताना वजायमानो वरवीरचन्द्र । तदन्वये सूरिवरप्रधानो ज्ञानादिभूषो गणिगच्छराज ॥५॥ -प्रा० पच ०, प्रशस्ति ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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